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चारित्र की शोभा : ज्ञान और सुध्यान-१
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नहीं होगा, न उससे जीवन बन रहा है या बिगड़ रहा है ? आत्मा का विकास या हित हो रहा है या नहीं ? इसका ध्यान नहीं रखा जायगा तो साधनामय जिन्दगी की चारित्ररूपी मशीन भी ठप्प हो जाएगी, अभीष्ट फल न दे सकेगी। इसलिए साधनामय जिन्दगी में चारित्ररूपी मशीन को बिगड़ने या ठप्प होने से बचाने के लिए ज्ञान और सुध्यान का होना अत्यावश्यक है ।
___साधना-सुन्दरी की चारित्ररूपी मांग सुहागसिंदूर से तभी सुशोभित हो सकती है, जब ज्ञानरूपी सुहाग के कंगन हों और ध्यानरूपी सुहागबिंदी हो।
जीवन का स्वस्थ और सुन्दर ढंग से निर्माण के लिए केवल शरीर ही काफी नहीं होता। ठीक है, मनुष्य शरीर से विविध क्रियाएँ करता है, परन्तु उसमें शरीर का संचालन ठीक ढंग से करने का ज्ञान न हो, तथा उसके बनने-बिगड़ने का ध्यान न हो तो स्वस्थ जीवन का निर्माण नहीं हो सकता। इसी प्रकार आध्यात्मिक जीवन-निर्माण के लिए भी शरीर के साथ बुद्धि और हृदय की जरूरत है। शरीर चारित्र है, बुद्धि ज्ञान है और हृदय ध्यान है । शरीर द्वारा साध्य चारित्र है, बुद्धि द्वारा साध्य ज्ञान है
और हृदय द्वारा साध्य ध्यान है। शरीर के द्वारा होने वाली क्रियाओं के साथ सुबुद्धिसाध्य सम्यग्ज्ञान न हो, तथा शुद्ध हृदय-साध्य सम्यग्ध्यान न हो तो शरीर-साध्य चारित्र सुचारित्र नहीं रहता, वह साधक को मोक्षपथ की ओर ले जाने के बजाय अज्ञान और लापरवाही के कारण उत्पथ की ओर ले जाता है और सांसारिक सिद्धियों की भूलभुलैया में या अन्धविश्वास के गर्त में डाल देता हैं। अतः आध्यात्मिक जीवन तभी मोक्ष प्रासाद पर आरूढ़ होता है, जब ज्ञान एवं सुध्यान को साथ लेकर चारित्र गति-प्रगति करता है।
ज्ञान और सुध्यान के बिना साधक चारित्र से भ्रष्ट हो जाता है स्थानांगसूत्र में तीन प्रकार के धर्म बताये गये हैं, जो परस्पर एक दूसरे से
तिविहे भगवया धम्मे पण्णत्ते तं जहा–सुअहिज्जिए, सुज्झाइए, सुतवस्सिए । जया सुअहिज्जियं भवइ, तया सुज्झाइयं भवइ। जया सुज्झाइयं भवइ, तया सुतवस्सियं भवइ । से सुअहिज्जिए, सुज्झाइए, सुतवस्सिए सुयक्खाएणं भगवया धम्मे पण्णत्ते।
भगवान ने तीन प्रकार का धर्म प्ररूपित किया है, जैसे कि-सु-अधीत (सम्यग्ज्ञात) सु-ध्यात एवं सुतपस्थित (सम्यक् आचरित)।
जब धर्म भलीभाँति अध्ययन (ज्ञात) कर लिया जाता है, तब वह सुध्यात (सम्यकप से उसका ध्यान) कर लिया जाता है।
जब वह सम्यक् ध्यात हो जाता है, तब वह सुतपस्थित (भलीभाँति आचरित) होता है।
इस प्रकार सु-अधीत, सुध्यात और सु-तुपस्थित धर्म की भगवान ने प्ररूपणा की है, यही स्वाख्यात धर्म है ।
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