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चारित्र की शोभा : ज्ञान और सुध्यान-१ २२५ मद्रास के एक धनाढ्य पति-पत्नी तीर्थयात्रा करने के लिए पंढरपुर पहुंचे। वे वहाँ एक धर्मशाला में ठहरे । उनके पास के कमरे में ही एक महाराष्ट्रीयन परिवार . ठहरा हुआ था। एक दिन एकादशी के पारणे के अवसर पर मराठी परिवार ने भोजन में पूरणपोली बनायी। मद्रासी परिवार को भी उन्होंने भोजन के लिए आमन्त्रित किया। उन्हें महाराष्ट्र को पूरणपोली बहुत अच्छी लगी। अतः मद्रासी बहन ने महाराष्ट्रीयन बाई से पूरणपोली बनाना सीख लिया। पंढरपुर से अन्य कई तीर्थस्थानों में भ्रमण करते हुए वे मद्रास पहुंचे।
कुछ दिनों बाद मद्रासी सेठ की पत्नी ने एक दिन अपने पति से कहा
"स्वामिन ! कल लगभग अपने सौ इष्टमित्रों को भोजन के लिए आमन्त्रित कर लीजिए । मैं उन सबको महाराष्ट्रीयन पूरणपोली बनाकर खिलाऊँगी।"
पति ने कहा- "तुम पहले पूरणपोली बनाने की दो-चार बार प्रेक्टिस कर लो, ताकि मेहमानों के आने पर कोई गड़बड़ न हो।"
पत्नी बोली- "इसमें गड़बड़ क्या होगी ? पूरणपोली बनाना तो मैं सीख ही आई हूँ।"
पति महोदय ने पत्नी की बात पर विश्वास करके दूसरे दिन लगभग १०० मित्रों को भोजन का आमन्त्रण दे दिया। पत्नी ने पूरण तैयार किया आटा भी गूंथ कर उसका पिंड बना लिया। पूरणपोली तो गर्म-गर्म परोसी जाती है । अतः मेहमानों के लिए थालियाँ और बाजोट लगा दिये गये। परन्तु पूरणपोली बनाने के प्रारम्भ में ही मद्रासी बाई विचार में पड़ गई–'आटे में पूरण डालूं या पूरण में आटा ?' काफी देर तक वह इसी पशोपेश में पड़ी रही। फिर उसे याद आया कि 'पूरणपोली बनाते समय महाराष्ट्रीयन बाई तो सफेद साड़ी पहने हुई थी, मैं तो लाल साड़ी पहने हैं।' अतः चट् से उसने सफेद साड़ी सहन ली, फिर भी पूरणपोली नहीं बनी%B तब उसे याद आया कि 'अरे ! उस बाई ने तो गहने नहीं पहने हुए थे, मैं तो गहने पहने हूँ।' इस पर उसने सब गहने उतार डाले । मगर पूरणपोली अब भी नहीं बनी। कुछ देर बाद उसे स्मरण हो आया कि 'उस बाई के सिर पर तो केश नहीं थे, मेरे सिर पर तो घने केश हैं।' उसे यह पता नहीं था कि महाराष्ट्र की महिलाएँ विधवा होने के बाद सिर मुड़वा लेती हैं। इस प्रथा से अनभिज्ञ मद्रासी बाई ने पति को बुलाकर कहा-"मेरे केश कटवा दीजिए, ताकि पूरणपोली बन जाय।"
__ पति महोदय चिन्ता में पड़ गये कि अब क्या किया जाय ? केश कटाने का पूरणपोली बनाने से क्या ताल्लुक है ?, केश कटवाने पर भी वह न बनी तो क्या होगा ? सहसा उसे याद आया कि पड़ोस में ही एक मराठी बाई रहती है, उसे क्यों न बुला लिया जाय । महाराष्ट्रीयन बहन आई और उसने पूछा-"क्या बात है ?"
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