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प्रशम की शोभा : समाधियोग- २
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तब महिला ने कहा - " जिसकी चीज हो, उसे वापस सौंप देनी चाहिए, इसमें तुम्हें तो किसी प्रकार का मन में रंज नहीं होगा न अपनी बात पर पक्के रहोगे न ! फिर मन में किसी प्रकार का दुःख तो नहीं करोगे ?
पति ने कहा - " इसमें रंज-गम की क्या बात है ? आज तुम कुछ विचित्रसी बातें कहती हो, एक छोटा सा बच्चा भी समझ जाए, उसे तुम समझ नहीं पा रही हो ।"
इस पर महिला ने कहा - " देखना, अपने बचन पर दृढ़ रहना । प्रभु ने हमें धरोहर सौंपी थी, वह आज वापस ले ली है । वह एक कीमती गहने के समान ही बहुमूल्य था ।" यों कहते हुए उसने लड़के के शव पर से कपड़ा हटाकर अपने पति को बताया। पति को यह अनहोना दृश्य देखकर रंग तो हुआ, परन्तु उसकी धर्मपत्नी ने पहले से ही उसे वचनबद्ध कर लिया था, इसलिए अपने मन को समझाकर शान्त किया ।
इसी प्रकार किसी भी इष्ट वस्तु का वियोग या अनिष्ट वस्तु का संयोग होने पर प्रशमनिष्ठ व्यक्ति शोक-सन्ताप नहीं करता, वह मन को शान्ति से समझाकर समाधिस्थ कर लेता है ।
कई लोग जरा-सी प्रतिकूल परिस्थिति या प्रतिकूल व्यक्ति के पाते ही, अमनोज्ञ शब्दों को सुनकर एकदम खीज उठते हैं और उससे लड़ने-झगड़ने को तैयार हो जाते हैं, परन्तु प्रशमनिष्ठ साधक प्रतिकूल परिस्थिति में भी शान्त रहता है, वह दूसरे का दोष न देखकर अपनी आत्मा का ही अपराध देखता है ।
भक्त तुकाराम का कीर्तन सुनने तो एक व्यक्ति प्रतिदिन आता था, पर उनसे बहुत द्वेष रखता था, उन्हें नीचा दिखाने की फिराक में रहता था । एक दिन तुकाराम की भैंस उसके बाग के कुछ पौधे चर आई । इस पर वह लगा उन्हें गालियाँ सुनाने । गालियों से जब भक्त तुकाराम उत्तेजित न हुए तो उसे और भी गुस्सा आया । अतः काँटेदार छड़ी लेकर उन्हें पीटने लगा । तुकाराम के शरीर से रक्त बहने लगा, फिर भी न उन्हें न क्रोध आया, न उन्होंने कोई प्रतिरोध ही किया ।
सन्ध्या समय वह व्यक्ति नित्य की भाँति कीर्तन में नहीं आया तो प्रशमनिष्ठ तुकाराम स्वयं उसके घर गये और स्नेहपूर्वक भैंस की गलती की क्षमा माँगते हुए उसे कीर्तन में ले आये | उसने आते ही प्रशमनिष्ठ तुकाराम के चरणों में गिरकर क्षमा माँगी । तब से वह उसका परम भक्त बन गया ।
प्रशमनिष्ठ व्यक्ति प्रतिकूल परिस्थिति में भी शान्त पर हर हाल में मस्ती रहती है, वह गरीबी में भी सन्तुष्ट किसी बात की शिकायत नहीं रहती, न वह किसी की जलता है । उसके चित्त में प्रसन्नता रहती है । वह प्रत्येक विरोधी के साथ भी शान्तिपूर्ण व्यवहार करता है । वह अपने
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रहता है । उसके चेहरे रहता है, किसी से उसे उन्नति देखकर ईर्ष्या से
व्यक्ति, यहाँ तक कि न्यायोचित, नैतिक
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