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आनन्द प्रवचन : भाग १०
चाहिए, यह कोई जरूरी नहीं। प्रयत्नशील व्यक्ति दो-तिहाई असफलता और एकतिहाई सफलता का अनुमान लगाकर काम करते हैं, उसी में सन्तोष करते हैं, उतना ही पर्याप्त समझते हैं। नौकरी न मिली, तरक्की न हुई, नियुक्ति अमुक जगह पर न हुई तो इसमें हतोत्साह होने की क्या बात है ? उन्नति के लिए प्रयत्न करना चाहिए, पर जो भी परिणाम आए, उसे सन्तोष और धैर्यपूर्वक मुस्कराते हुए शिरोधार्य करना चाहिए।
आर्थिक घाटा लग जाने पर हैरान होने से कोई समस्या नहीं सुलझती। यदि व्यक्ति के पास क्षमता, प्रतिभा, साहस, पुरुषार्थ और कौशल मौजूद है तो, एक न एक दिन आवश्यक साधन फिर जुट सकते हैं। न भी जुटे तो कम खर्च में भी सुन्दर ढंग से जीवनयापन कर सकता है । स्वेच्छा से अपनी इच्छाओं एवं आवश्यकताओं पर संयम करना धर्माचरण का अंग बन जाएगा। खर्चों में कटौती करके जो स्वैच्छिक गरीबी धारण की जाती है, वह अखरती नहीं। समय के अनुरूप अपने स्तर को घटा लेने का साहस जिसमें मौजूद है, जिसे हल्की माने जाने वाली मजदूरी में अपना गौरव नष्ट होता नहीं दीखता, उसके लिए किसी भी स्थिति में परेशानी का कोई कारण नहीं । अपने आपको परिस्थितियों के अनुरूप ढाल लेने का जिसमें सिफ्त है, उसके लिए निर्धनता और अभाव में भी प्रसन्न रहने का कारण मौजूद है । जिसकी नसों में पुरुषार्थ का माद्दा है, वह नीतिपूर्ण आजीविका का कोई न कोई रास्ता खोज ही लेता है। भविष्य की दुश्चिन्ता : प्रशम बाधक
भविष्य की आशंकाओं और दुष्परिस्थितियों की सम्भावनाओं से प्रशमप्रिय व्यक्ति को चिन्तित और आतंकित होने की जरूरत नहीं। परिस्थितियां सदा एक-सी नहीं रहतीं, वे भी समय आने पर बदलती है, इसलिए निराश और पस्तहिम्मत होकर बैठना भी अच्छा नहीं । साहसी, निर्भीक और आशावादी होकर ही प्रशमप्रिय व्यक्ति जीता है, प्रसन्नता और हँसी-खुशी के साथ ।
प्रतिकूल परिस्थितियों में क्रुद्ध, रुष्ट, असन्तुष्ट और क्षुब्ध रहने से व्यक्ति के मस्तिष्क में नई-नई विकृतियां पैदा होंगी और वे बढ़ती चली जाएँगी । जहाँ असन्तोष, विक्षोभ एवं तनाव रहेगा, वहाँ सारा मानसिक ढाँचा ही लड़खड़ाने लगेगा। ऐसा व्यक्ति अपने ही दुर्गुणों से अपने आपको जलाता-गलाता रहता है, और अनेक शारीरिक, मानसिक आधि-व्याधियों से ग्रस्त होकर घोर अशान्ति का जीवन जीता है।।
प्रशमप्रिय लोग उदात्त और सन्तुलित दृष्टिकोण के होते हैं। वे जानते हैं कि मानव-जीवन सुविधाओं-असुविधाओं और अनुकूलताओं-प्रतिकूलताओं के तानेबाने से बुना हुआ है । संसार में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं हुआ जिसे केवल सुवि. धाएँ या अनुकूलताएँ ही मिली हों, कठिनाइयों का सामना न करना पड़ा हो । जो व्यक्ति प्रतिकूल परिस्थितियों से जकड़ा हुआ है, उसे जितनी अनुकूलताएँ मिलो हैं,
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