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________________ १८ अवस्थित और अनवस्थित आत्मा की पहचान ३८१, अनवस्थित व्यक्ति अपनी आत्मशक्ति से अनभिज्ञ ३८१, अनवस्थित व्यक्ति में आत्मनिष्ठा की कमी ३८३, एकाग्रता के अभाव में व्यवहार में भी सफलता नहीं ३८४, अस्थिरता ही असफलता का कारण ३८५, मनोयोग पूर्वक काम करने से विकास होता है ३८६, विषय विकारों की ओर अभिमुख आत्मा अवस्थित ३८६, अशान्त और असन्तुलित आत्मा अनवस्थित ३८७, कार्य में तल्लीन हो जाना सफलता के लिए आवश्यक ३८७ । ५६. शीलवान आत्मा ही यशस्वी शील ही यश का स्थायी मूलाधार ३८६, शील अपनी सुगन्ध दूर-दूर तक फैलाता है ३६०, दान-परायण से शील-संयमवान श्रेष्ठ ३६१ शील- रहित सर्वत्र अनादर पाता है ३६२, शीलवान आत्मा ही सच्चे माने में यशस्वी ३६३, शीलवान आत्मा की पहचान ३६४, प्रथम पहचान – जनसमुदाय के समक्ष गुरु के सान्निध्य में ब्रह्मचर्य पालन की प्रतिज्ञा ग्रहण करना ३६५, दूसरी पहचान —- सदाचार एवं सच्चरित्रता ३६५, शील में अहिंसा आदि पांचों व्रतों का समावेश ( भगवती सूत्र के अनुसार ) ३६६, तत्वार्थसूत्र के अनुसार श्रावक के सात उत्तर गुणों का शील में समावेश ३६६, राष्ट्रीय पंचशील ३६६, ब्रह्मचर्य में सभी व्रतों का समावेश ३६७, शीलवान की आत्मा कितनी प्रभावशील व महान ३६७, शील की महिमा ३१७, शील का प्रभाव ३६८, अपंग किन्तु शीलनिष्ठ जर्मन प्रसारिका पेट्राक्रॉस का प्रेरणादायी जीवन ३६६, शीलवान की दृष्टि आत्मा पर ४०१, शीलवान आत्मा : भय और प्रलोभनों के बीच अडिग ४०२, शीलवती आत्मा के शील का रूप ४०३, देश, समाज और धर्म की सेवा के लिए ४०३ । Jain Education International ३८६-४०४ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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