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मूलस्रोत
दुट्ठाहिवा दंडपरा हवंति, विज्जाहरा मंतपरा हवंति । मुक्खा नरा कोवपरा हवंति, सुसाहुणो तत्तपरा हवंति ॥८॥ दुष्ट-अधिप तो दण्ड-परायण मन्त्र-परायण विद्याधर जन । क्रोध-परायण मूर्ख मनुज है तत्त्व-परायण साधु शिवंकर ॥८॥ सोहा भवे उग्गतवस्स खंती, समाहिजोगो पसमस्स सोहा । नाणं सुझाणं चरणस्स सोहा, सीसस्स सोहा विणए पवित्ति ॥६॥ तप की शोभा विमल-क्षमा में, समाधियोग है शम की शोभा । ज्ञान-ध्यान से चारित्र शोभता, विनय बढ़ाता शिष्य की शोभा ॥६॥ अभूसणो सोहइ बंभयारी, अकिंचणो सोहइ दिक्खधारी । बुद्धिजुओ सोहइ रायमंती लज्जाजुआ सोहइ एकपत्ति ॥१०॥ ब्रह्मचारी विभूषा रहित शोभता शोभे अकिंचन साधु सदा । बुद्धि राजमन्त्री की शोभा लजवंती शोभती पतिव्रता ॥१०॥ अप्पा अरी हो अणवट्टियस्स, अप्पा जसो सीलमओ नरस्स ।"" स्वयं शत्रु अनवस्थित आत्मा शीलवान यश पाता है।"
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