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प्रशम की शोभा : समाधियोग-१ १९१ एक व्यक्ति साधक कहलाता है, घण्टों मौन रखता है, ध्यान भी करता है, कुछ नियम भी लेता है, परन्तु दूसरों के दोष देखता है, मन ही मन दूसरों से कुढ़ता है, द्वेषवश दूसरों के विषय में बुरा चिन्तन करता है तो बाहर से शान्त और निश्चेष्ट दिखाई देने पर भी उसे प्रशमयुक्त नहीं कहा जा सकता। उसका वह ध्यान मौन आदि प्रशम का नाटक मात्र है।
नशे की मस्ती : कितनी सस्ती ____ कुछ लोग शान्ति के लिए भांग, गांजा, अफीम, चरस, मद्य आदि मादक वस्तुओं का सेवन करते हैं और उनके नशे में चूर होकर एक जगह पड़े रहते हैं, ज्यादा हलन-चलन नहीं करते । कई लोग मादक वस्तुओं का सेवन प्रभु को पाने के लिए अनिवार्य समझते हैं । क्या मादक वस्तुओं से अंगों में दिखाई देने वाली चेष्टा शान्ति को आप प्रशम कह सकते हैं ? अगर इस नशीली मस्ती को ही शान्ति कहेंगे तो यह शान्ति बड़ी ही सस्ती और सुलभ हो जायेगी। हर कोई ऐसी शान्ति पाने की चेष्टा करेगा, किन्तु यह शान्ति नहीं है। क्योंकि मादकता से व्यक्ति की संवेदना-शक्ति मूच्छित हो जाती है । क्लोरोफार्म सुंघा देने पर जैसे रोगी की संवेदना शक्ति मूच्छित हो जाती है, वैसी ही स्थिति नशीली चीजों के सेवन से होती है । इस प्रकार शान्ति में सुषुप्त चेतना की स्थिति है, चैतन्य के पुरुषार्थ की शान्ति नहीं, इसलिए इसे भी प्रशम कहना अनुचित है । अमर नशेबाजों की इस स्थिति को प्रशम कहा जायेगा तो दुनिया में जितने भी नशेबाज हैं, वे सब प्रशमभाव वाले कहलाने लगेंगे, परन्तु यह बात सिद्धान्तसम्मत नहीं है ।
हिप्पी लोग चरस, गांजे का दम लगाते हैं, रम की बोतल पीकर नशे में चूर हो जाते हैं। क्या उनकी इस प्रक्रिया को भी प्रशम-साधना कहा जायगा? कदापि
नहीं।
निष्कर्ष यह है कि जब तक अन्तर् से विषय-वासनाओं एवं कषायों का शमन नहीं किया जाएगा, तब तक ये बाह्य स्थूल प्रयास केवल बालचापल्य हैं । इनके अपनाने से प्रशम जीवन में नहीं आ पाएगा, प्रशमरस तभी आएगा, जब अन्तर् से कषाय-विषयों के रस का उच्छेद होगा।
प्रशम कहाँ और किसमें ? कई लोग भ्रमवश यह मानते हैं, कि सुख शान्ति पदार्थों में है। अमुक-अमुक इष्ट पदार्थों के मिल जाने पर मनुष्य की तृप्ति हो जाएगी, तभी शान्ति हो जाएगी और शान्ति ही प्रशम का मूल कारण है। परन्तु यह निरा भ्रम है । पदार्थों में प्रशम का निवास नहीं है । उन्हें प्रशम का आधार कहना अज्ञानता है। क्या धन-सम्पत्ति, स्वास्थ्य, सौन्दर्य, सुखकारी साधन आदि प्राप्त हो जाने से सुख-शान्ति आ जायेगी। ये चीजें होने पर भी क्रोधी या कामी स्वभाव न बदला, दुर्व्यसनों में पड़ गया, या
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