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आनन्द प्रवचन : भाग १०
कोई दुर्घटना हो गई तो सुख-शान्ति धरी रह जायगी, उसके बदले अशान्ति की घुड़दौड़ मन में शुरू हो जायगी । और फिर इन चीजों के होने न होने पर ही शान्तिअशान्ति नहीं होती । एक आदमी इन चीजों के अभाव में भी शान्ति से रहता है, दूसरा इन वस्तुओं की प्रचुरता होने पर भी दूसरों के पास अधिक प्रचुरता देखकर ईर्ष्या से जलता है, दूसरों को देने में लोभवृत्तिवश कतराता है, भाइयों के साथ बेईमानी करके मुकदमेबाजी ठानता है, ये और इस प्रकार की अशान्ति से ग्रस्त रहता है ।
इसी प्रकार सुन्दर भवन मिलने, न मिलने पर सुख-शान्ति और दुःख अशान्ति का दौर चलता है, वह भी स्थायी नहीं होता । ममता के कारण भवन होने पर भी जरा-सा बिगड़ने, नष्ट होने या बिक जाने पर अशान्ति का अनुभव करता है, जबकि दूसरा व्यक्ति भवन न होने पर भी छोटी-सी झौंपड़ी में मस्ती और शान्ति से जीवनयापन करता है ।
इसलिए सुख-शान्ति और उससे होने वाले प्रशम का मूल आधार पदार्थ और साधन नहीं, आत्मा है । प्रशम का निर्झर अपने अन्दर से फूटता है । न किसी अभीष्ट, प्रिय, मनोज्ञ व्यक्ति – सुन्दर स्त्री, बच्चे या अन्य प्राणी में - प्रशम का निवास है । अपनी सुन्दर स्त्री को देखकर उसका पति हृदय से उसे प्यार करता है, उसका जरा-सा वियोग या विरह उसके लिए असह्य हो उठता है, लेकिन मान लीजिए उस स्त्री का स्वभाव क्रोधी हो गया है, बात-बात में वह झगड़ा कर बैठती है, अपनी प्रिय वस्तु पाने के लिए जिद करती है, तो क्या अब भी उसके पति का उसके प्रति सुख-शान्ति या आकर्षणजनित आनन्द बना रहेगा । उस पत्नी का रूप-रंग सभी पूर्ववत् बना रहने पर भी अब उसे देखकर पति अवश्य ही नफरत करेगा, आकर्षण नहीं रहेगा, उसके प्रति आकर्षणजनित सुख-शान्ति या आनन्द का भाव नहीं रहेगा ।
इसलिए प्रशम को किसी वस्तु या व्यक्ति की प्राप्ति में खोजना मूर्खता है । वह वहाँ मिलता नहीं क्योंकि उसका निवास वहाँ है ही नहीं, वह तो आत्मा में है । इसी प्रकार कई लोग कहते हैं कि सांसारिक भोग-विलासों और विषय वासनाओं की तृप्ति हो जाय तो बस हमें सुख-शान्ति मिल जायगी । पर यह भी निरा भ्रम है । भोग-विलासों या विषय-वासनाओं की तृप्ति उनके अधिकाधिक उपभोग से कदापि नहीं हो सकती, वह और अधिक भड़कती है । प्रशम के बदले ये तो अशान्ति और दुःख
ओर ले जाते हैं । विषय-भोगों से क्षणिक तृप्ति भले ही हो जाय, परन्तु उनके संयोग और वियोग दोनों में दुःख और अशान्ति है । भोग-विलासों या विषय-वासनाओं की तृप्ति में प्रशम को खोजना न केवल अपने समय को बर्बाद करना है, बल्कि अपनी शक्तियों को भी नष्ट करना है ।
अतः वास्तव में प्रशम का सम्बन्ध विषयों एवं पदार्थों से ऊपर उठकर आत्मसन्तोष से है, आध्यात्मिक जीवन अपनाने से है । स्वेच्छा से विषयों से विरक्त होने से
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