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प्रशम की शोभा : समाधियोग-१ १८३ ही नहीं। उसके समीप बैठा हुआ व्यक्ति आश्चर्य के उसकी ओर ताकता रह गया । तब सुकरात ने इस प्रसंग पर कहा-"बादल गरजते हैं और बरसते नहीं है तो शान्ति नहीं होती। गर्जन के बाद वृष्टि होती ही है, इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं।"
यह है, प्रशमयुक्त मनःस्थिति का ज्वलन्त उदाहरण !
जैसे माता अपने बालक की सब प्रकार से रक्षा करती है, धायमाता उसे दूध पिलाकर तथा खिलाकर उसे स्वस्थ एवं सशक्त रखती है, वैसे ही प्रशम भी माता की तरह आत्मा का रक्षक और धायमाता की तरह स्वस्थ एवं सशक्त रखने वाला है । पाश्चात्य साहित्यकार शेक्सपियर ने यही बात कही है
"Peace dear nurse of arts, plenties and joyful birth."
'शान्ति (प्रशम) कलाओं की, प्रचुरताओं की और आनन्ददायक जन्म की प्रिय नर्स (धाय माता) है।'
वास्तव में, मानवजन्म को आनन्ददायक बनाने वाला, जीने की विभिन्न कलाओं में सफलता दिलाने वाला और मनुष्य के हृदय को प्रचुरताओं से-गुणों की बहुलताओं से आनन्दमय बनाने वाला प्रशम ही है। प्रशम के बिना मानव-जन्म हँसीखुशी से व्यतीत करना कठिन है, मनुष्य को विभिन्न कलाओं में सफलता पाना आसान नहीं होता और प्रचुर साधनों के होते हुए भी प्राचुर्य का आनन्द प्राप्त करना दुष्कर होता है । इस पर से जाना जा सकता है कि 'प्रशम' की मानव-जीवन में कितनी महत्ता और उपयोगिता है। इसीलिए एक विचारक ने शम की महत्ता बताते हुए कहा है
शम एव परं तीर्थ, शम एव परं तपः ।
शम एव परं ज्ञानं, शमो योगः परस्तथा ॥ 'शम ही परम तीर्थ है, शम ही उत्कृष्ट तप है, शम ही पवित्र ज्ञान है, शम ही उत्तम योग है।'
प्रशम क्या है, क्या नहीं ? प्रश्न यह होता है कि जीवन के लिए आवश्यक और महत्त्वपूर्ण तत्त्व प्रशम क्या है ? प्रशम किसे कहें और किसे नहीं ? क्योंकि प्रशम या शम के अनेक लक्षण विभिन्न धर्मग्रन्थों में पाये जाते हैं, और उन लक्षणों में कहीं-कहीं कोई तारतम्यता, एकरूपता या क्रमबद्धता नहीं पाई जाती, इसलिए साधारण बुद्धि का मानव चक्कर में पड़ जाता है कि प्रशम का वास्तव में क्या स्वरूप है ?
शम का प्रथम लक्षण-स्वभाव-रमण प्रवचनसार की तात्पर्यवृत्ति में शम का लक्षण से धर्म का प्रधान अंग बताते हुए इस प्रकार किया गया है
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