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आनन्द प्रवचन : भाग १०
वातावरण में सेठ से क्षमायाचना की। दर्शकों पर इसका अशातीत प्रभाव पड़ा, उनके मुंह से भी दोनों के लिए बरबस धन्य-धन्य शब्द निकल पड़े।
यह है प्रशम का चमत्कार, जिसने विनम्रता, उदारता और क्षमा की त्रिपुटी के माध्यम से महाजन और हरिजन दोनों का हृदय परिवर्तन कर दिया । यदि प्रशम का अवलम्बन न लिया जाता तो वर्षों ही क्या, जिन्दगीभर तक दोनों का आपसी वैमनस्य चलता रहता। प्रशमयुक्त जीवन क्या करता है ?
जिसके अन्तःकरण में प्रशम विराजमान हो गया, वहाँ प्रसन्नता, क्षमा, शान्ति और आत्म-गौरव के अनुरूप आत्मरमणता आदि गुण-धर्म व्यक्तरूप में आ ही जाते हैं। वह इन भावों के अनुरूप व्यवहार भी करता है और दूसरों को भी अपने व्यवहार से प्रभावित एवं लाभान्वित करता है। वह प्रशान्तात्मा अग्नि को भी नीर में परिवर्तित कर देता है । बाह्य जगत की हलचल या प्रचण्ड आग उसके अन्तर्मन में प्रविष्ट नहीं हो सकती। ऐसा प्रशान्तात्मा आग में बैठकर भी आग से अछूता रहता है । उसके आसपास बाह्यजगत में भी विपरीत परिस्थिति अधिक समय तक रह नहीं सकती। या तो यह विपरीत स्थिति से परे हो जाता है, या वह स्थिति ही बदल जाती है। प्रशान्तात्मा के प्रभाव से शूली का सिंहासन, पुष्पमाला का सर्प और अग्निकुण्ड का पद्मसरोवर बन जाता है। इसके विपरीत जिसके हृदय में प्रशम नहीं है, प्रसन्नता और धैर्य नहीं है, उसके लिए सुखशय्या भी कण्टकशय्या बन जाती है। वह जल को भी अनल बना देता है। अशान्त जीवन नन्दनवन को भी मरुस्थल बना देता है। यश की चाह प्रशमरहित जीव को संतप्त और अतृप्त बना देती है। उसके लिए शान्ति के हेतु भी अशान्ति के हेतु बन जाते हैं। जिस व्यक्ति का हृदय प्रशमधन से सम्पन्न है, अन्तरंग वैभव से गौरवशाली है, उसके इस आत्मवैभव को छीनने की किसी भी दुर्गुण में ताकत नहीं है। उसके लिए सदैव सर्वत्र आनन्दमंगल है।
यूनानी दार्शनिक सुकरात अपनी पूर्ववय में बड़ा ही क्रोधी और अशान्त था। अपनी इच्छा के विपरीत कुछ भी होता देखता तो वह आग-बबूला हो उठता था । इच्छाओं से लिप्त अभिमानी व्यक्ति का पारा क्षण-क्षण में क्रोधादि आवेश से चढ़ जाता है। सुकरात को अपनी यह स्थिति खटकी । उसने प्रशम का माहात्म्य समझकर उसकी विशिष्ट साधना की, जिसके फलस्वरूप अपने आप पर उसने आधिपत्य जमा लिया। सुकरात के प्रशम की परीक्षा के लिए सर्वप्रथम उसकी कर्कशा पत्नी ही निमित्त बनी। वह क्रोधी स्वभाव की थी। एक दिन सुकरात घर के बाहर बैठा अपने एक मित्र से वार्तालाप कर रहा था। उसकी पत्नी किसी कारणवश नाराज होकर भली-बुरी गालियां दे रही थी। सुकरात ने उसकी बात पर कुछ भी ध्यान न दिया, इससे उसकी स्त्री के क्रोध में तीव्रता आ गई। उसने झूठन का कुण्डा उठाकर सुकरात के मस्तक पर उंडेल दिया। किन्तु सुकरात इस प्रकार शान्त बैठा रहा मानो कुछ हुआ
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