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________________ १६६ आनन्द प्रवचन : भाग १० उग्रतप के साथ क्षान्ति से ही आत्मिक महाशक्ति की प्राप्ति उग्रतप से महाशक्ति प्राप्त हो जाने के बावजूद भी अगर तपस्वी के जीवन में क्षान्ति न होगी तो वह शक्ति विपरीत रूप में परिणत हो जायगी, उससे महान् अनर्थ पैदा होगा, वह शक्ति आध्यात्मिक महाशक्ति रूप में परिणत न होगी । आत्मिक महाशक्ति का मतलब है - आत्मा में उच्च से उच्च महाशक्ति का प्रकट होना और उससे उच्च से उच्च घोर तप कर सकना, दृढ़तापूर्वक चारित्र पालन कर सकना, उपसर्गों एवं परीषहों, संकटों और आफतों के आ पड़ने पर शुद्ध धर्ममार्ग से जरा भी विचलित न होना, मरणान्त कष्ट को भी समभावपूर्वक सह लेना । उग्रतपसे इस प्रकार की आध्यात्मिक महाशक्ति तभी प्राप्त हो सकती है, जब उग्रतप के साथ क्षान्ति हो । अगर उग्रतप के साथ उग्रक्रोध होगा, बात-बात में झुंझलाहट होगी, किसी के जरा से कुछ कहने पर वह झल्ला उठेगा, अपमान या निन्दा करने वाले के प्रति हिंसक प्रतिक्रिया पैदा होगी, शाप दे देगा या कोप कर बैठेगा, अथवा अहंकारग्रस्त होकर दूसरों की उन्नति या प्रगति देखकर उनके प्रति मन में द्व ेष, आक्रोश, ईर्ष्या, घृणा एवं नीचा दिखाने की वृत्ति पैदा होगी या किसी प्रकार के कष्ट, परीषह, संकट, उपसर्ग आदि आने पर समभाव से उन्हें सहन नहीं करेगा, तप से प्राप्त सिद्धियों या लब्धियों को पचाने की क्षमता नहीं होगी, जगह- जगह उनका प्रदर्शन, आडम्बर एवं प्रयोग करके प्रसिद्धि या सत्कार - पूजा पाने की लालसा होगी, निन्दा, गाली, अपमान, भर्त्सना, ताड़ना आदि समभावपूर्वक सहने की वृत्ति न होगी, फलाकांक्षा अथवा फलप्राप्ति की उतावली होगी, धीरतापूर्वक तटस्थभाव से अपना जीवन निराडम्बरपूर्ण ढंग से बिताने की वृत्ति न होगी, या तपस्या से सिद्धि प्राप्त होने पर मारण, मोहन, उच्चाटन आदि प्रयोग करने की बलवती लालसा होगी और क्षमा और नम्रता न होगी तो वह उग्रतप आध्यात्मिक शक्ति बढ़ाना तो दूर रहा, आत्मगुणों का सर्वनाश कर बैठेगा, आत्मा का बड़ा भारी अहित कर बैठेगा । अतः उग्रतप के साथ क्षान्ति का होना अत्यावश्यक है । क्षान्ति उग्रतप की लगाम है | क्षान्तिरूपी लगाम न होगी तो उग्रतप का घोड़ा उद्दण्ड होकर सवार (तपस्वी) को ही पतन के खड्डे में गिरा देगा अथवा उत्पथ पर ले जाकर उसे संसार की भयंकर अटवी में भटका देगा । - उग्रतप के साथ अगर क्षान्ति नहीं होगी तो जिस पवित्र उद्देश्य से उग्रतप किया जाता है, वह उद्देश्य पूर्ण न होगा, जिस आध्यात्मिक लक्ष्य - मोक्ष प्राप्ति या कर्मों से मुक्ति के लिए उग्रतप किया जाता है वह लक्ष्य प्राप्त नहीं होगा और वही कहावत चरितार्थ होगी - "आये थे हरिभजन को, ओटन लगे क्षान्ति : उग्रतप की शोभा कपास ।" इसीलिए महर्षि गौतम ने संकेत किया है कि उग्रतप के साथ क्षान्ति हो तभी उसकी शोभा है । अन्यथा, उग्रतप के साथ असहिष्णुता, क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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