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उपतप की शोभा : शान्ति -२ १५६ इसके अतिरिक्त तत्त्वार्थराजवात्तिक में बताया है कि यह शरीर दुःख का कारण है; रोग, शोक, आधि, व्याधि, उपाधि आदि अनेक दुःख शरीर के साथ लगे हुए हैं, तथा यह अपवित्र है, इससे कितना ही विषयभोगों का सेवन किया जाए तृप्ति नहीं होती, किन्तु अशुचि एवं अनित्य होने पर भी इससे व्रतों, नियमों का पालन करने से यथाशक्ति मार्गाविरोधी तप करने से यह गुणों के संचय में आत्मा की सहायता करता है । इस विचार से विषय-विरक्त होकर आत्मकार्य के प्रति शरीर का नौकर की तरह उपयोग कर लेना उचित है ।
इस दृष्टि से भी यथाशक्ति उग्रतप करना उचित है ।
साधक छोटा हो या बड़ा, गृहस्थ हो या श्रमण, जीवन-यापन करते समय उससे अनेक बार अज्ञान, प्रमाद, भ्रान्ति आदि के कारण अनेक अपराध हो जाते हैं, शारीरिक भी, मानसिक भी। उन अपराधों तथा दोषों का परिमार्जन करने का एकमात्र उपाय प्रायश्चित्त है, जो कि जैन दृष्टि से आभ्यन्तर तप है। परन्तु उस प्रायश्चित्त को क्रियान्वित करने के लिए उग्र बाह्य तप करना आवश्यक होता है, उसके बिना कोरी प्रायश्चित्त करने की भावना से दोषों की शुद्धि नहीं होती।
अतः प्रायश्चित्त द्वारा आत्मा पर लगे हुए दोषों के निवारण के लिए भी उग्रतप करने का विधान शास्त्रों में किया गया है । जैसे कि एक आचार्य ने कहा है
यत्किचिदेनः कुर्वन्ति मनोवाक्कर्मभिर्नराः ।
तत्सर्वं विनश्यत्याशु तपसव तपोधनाः॥ तपोधनी मानव मन, वचन और कर्म (काया) से जो भी पाप करते हैं; उन सबको वे तपस्या से ही नष्ट करते हैं।
उग्रतपश्चरण की शक्ति कैसे और कहाँ से ? उग्रतप की उपयोगिता और आवश्यकता समझ लेने के बाद यह प्रश्न कदाचित् आपके दिमाग में उठ सकता है कि हममें इतनी शक्ति और इतना समय कहाँ जो उग्रतप करें, यह तो साधु-महात्माओं का काम है। उनके पास समय भी है, निश्चिन्तता भी है, कमाने-खाने की चिन्ता नहीं है और शक्ति भी है, क्योंकि गृहस्थ की अपेक्षा उच्च साधना होने के कारण तथा अनेक परीषह (धर्मपालनार्थ कष्ट) सहने के कारण उनका मनोबल ऊँचा है ।
परन्तु दीर्घदृष्टि से सोचा जाये तो यह निरी भ्रान्ति ही सिद्ध होगी। सद्गृहस्थ हो या साधु, दोनों की आत्मा में शक्ति तो मूल में एक-सरीखी है। प्रत्येक प्राणी की आत्मा में, अनन्त शक्ति है, परन्तु किसी की शक्ति अधिक आवृत्त है, किसी की कम है । साधु की अनन्त शक्ति पर भी पर्दा तो है, लेकिन ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की साधना में पुरुषार्थ करे तो उसकी सुषुप्त शक्तियाँ जागृत हो जाती हैं,
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