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________________ १५२ आनन्द प्रवचन : भाग १० वह उग्रतप की तालीम न पाई हुई होती तो पति और सौत के निष्ठुर व्यवहार पर क्रुद्ध और दुःखित होकर रोने लगती, या ईर्ष्यावश तप करके शक्ति अर्जित कर बदला लेने की सोचती । परन्तु ऐसा करने से वह सच्चा उग्र तप न कर पाती। ___ उससे बालक ध्रुव ने कहा-"माँ ! तू कितने उच्च विचार वाली शक्ति. दायिनी देवी है। तप द्वारा परमात्म-पद की शक्ति प्राप्त करने की तुम्हारी शिक्षा से मैं निहाल हो गया हूँ। अब मैं वही उग्रतप करके परमात्मा की गोद में बैलूंगा। मुझे आज्ञा दो, माँ ! मैं उस उग्रतप को करने जाऊँ ?" आप कहेंगे कि ध्रुव जैसा छोटा सा बच्चा यह कैसे जानता था कि उग्रतप किस चिड़िया का नाम है, और उसमें कहाँ सामर्थ्य था, इतना उग्रतप करने का ? परन्तु मैं पूछता हूँ, उस अतिमुक्तक (अयवंता) मुनिवर में तप-संयम पालन की शक्ति कहाँ से आ गई ? छोटे से गजसुकुमार मुनि में आत्मा और शरीर के भेद-विज्ञान के साथ महाकाल श्मशान में जाकर तप करने की शक्ति कहाँ से प्राप्त हो गई थी ? ध्रुव को तो माता ने कुछ-कुछ बता भी दिया था- उग्रतप उसकी विधि और माहात्म्य के बारे में, लेकिन अतिमुक्तक एवं गजसुकुमार जैसे बालक मुनिवरों को किसने बताया था ? मगर उनके पूर्वजन्म के उत्तम संस्कार थे, जिनके कारण वे इतना उत्तम उग्रतप इतनी सहिष्णता एवं क्षमा के साथ कर सके। यही कारण है कि ध्रुव को भी पूर्वजन्म के संस्कारों से प्रेरित तपःशक्ति प्राप्त हुई थी। ध्रुव माता की आज्ञा लेकर वन में तप करने के लिए चल पड़ा। वीरमाता उसे अकेले वन में भेजने से घबराई नहीं। वह जानती थी कि यह बालक भले ही है, इसकी आत्मा में अनन्त शक्ति मौजूद है, तप से कर्मावृत्त शक्तियां प्रकट हो जाएंगी। ध्रुव को वन में जाते देख नारदजी ने उसका रास्ता रोककर कहा"बेटा ! तू अभी छोटा-सा बच्चा है, इस कोमल उम्र में तुझसे यह उग्रतप कैसे होगा ? छोड़ दे अपने इस साहस को !" दृढ़प्रतिज्ञ बालक ध्रुव ने निर्भीकता से उत्तर दिया-"भक्तराज ! आप तो परमात्मा के भक्त हैं, आपको तो मुझे इस उग्रतप के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए था, मगर आप तो मुझे इस उग्रतप से रोक रहे हैं। मैं राज्य करता तो आप न रोकते, किन्तु तप करने जा रहा हूँ, तो रोकने आए हैं, इससे मुझे तप की महाशक्ति में बड़ा आकर्षण लगता है, इसकी गरिमा की प्रतीति भी होती है।" नारदजी ने कहा- "मुझे तुम्हें तप करने से रोकने की इच्छा नहीं, किन्तु अगर तू घर से रुष्ट होकर भागकर जंगल में देह-दमन करने जा रहा हो तो तुझे रोकना मेरा कर्तव्य है।" ध्रुव ने उत्तर दिया-"मैं क्षत्रिय-पुत्र हूँ। घर से रूठकर वन में नहीं जा रहा हूँ, अपितु अपनी माता से तप की शिक्षा पाकर उनकी आज्ञा से वन में जा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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