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उपतप की शोभा : शान्ति–१ १५३ रहा हूँ। आप मुझे कायर मत समझिए । मैं तपस्या के लिए प्रतिज्ञाबद्ध होकर आया हूँ। या तो कार्य सिद्ध करूँगा या शरीर को विजित कर दूंगा।"
नारदजी ध्रुव की सहिष्णुता, विरक्ति और तपश्चरण की दृढ़ता देखकर दंग रह गये । उन्होंने ध्रुव को आशीर्वादसूचक वचन कहे-"जाओ तुम्हारी परीक्षा हुई, तुम उग्रतप के योग्य हो। मुझे भी तुम्हारी शक्ति का पता लगा।" ध्रुव ने अनेक कष्ट समभावपूर्वक सहते हुए उग्रतप किया और अपनी आत्मा को विशुद्ध बनाकर परमात्म-पद का साक्षात्कार किया। अब उसे राजा की गोद की आवश्यकता न रही।
__ इस कथा से आप समझ गये होंगे कि उग्रतप के साथ कितनी सहिष्णुता और आत्मसमाधि की आवश्यकता है ? सहिष्णुता उग्रतप की प्राण-शक्ति है। शान्ति के बिना उग्र तपस्या शोभास्पद नहीं होती। इसीलिए महर्षि गौतम ने कहा
'सोहा भवे उग्गतवस्स खंति ।' इस सम्बन्ध में अनेक पहलू शेष हैं, जिन पर मैं अगले प्रवचन में प्रकाश डालूंगा।
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