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आनन्द प्रवचन : भाग १०
कहते हैं उनकी पतिव्रता पत्नी चूडाला ब्रह्मचारी के वेष में उनके पास गई और उग्र तप के साथ अनिवार्य नियमों, व्रतों एवं कर्तव्यों का उपदेश दिया जिससे उनकी गुत्थियाँ सुलझ गयीं । उनके तप के साथ फलाकांक्षा की तीव्रता, अहंकार की ग्रन्थि एवं लौकिक लाभ की स्पृहा जुड़ गयी थी, जिससे उनकी आत्मसमाधि भंग हो गई थी । किन्तु चूडाला के उपदेश से उन्हें स्पष्ट सूझ गया कि अभी तक वह उग्र तप के योग्य नहीं बने । सामान्य तप तो राज्यकार्य करते हुए भी किया जा सकता है ।
निष्कर्ष यह है कि आर्यावर्त के तप त्यागमय जीवन का उद्देश्य आध्यात्मिक शान्ति रहा है । आध्यात्मिक शान्ति का अर्थ है - क्लेशों और विकारों की शान्ति । दीर्घ-तपस्वी श्रमण भगवान महावीर ने इतने उग्र तप ( लगभग ६-६ महीने तक के ) किये, लेकिन उन तपश्चर्याओं में उनकी आध्यात्मिक शान्ति कभी भंग न हुई ।
fron यह है कि तप की सीमा का अतिक्रमण करने, तपःसमाधि को भंग करने एवं आत्मसमाधि नष्ट हो जाने से यथार्थ माने में उग्र तप नहीं होता, वह एक प्रकार से शरीर और मन को उग्र ताप देना हो जाता है ।
उग्रतपरूपी तलवार रक्षक भी, संहारक भी
उग्र तपस्या एक तलवार है । वह अगर तेज धार वाली हो तो कर्मरूपी शत्रुओं को नष्ट कर डालती है अन्यथा समय पर धोखा दे देती है, स्वयं के लिए हानिकारक हो जाती है । अर्थात् उग्र तपस्या अगर बाह्य के साथ आभ्यन्तर भी हो, सात्त्विक हो, राजसिक तामसिक न हो, इहलौकिक - पारलौकिक सुखभोग की वाञ्छा से युक्त न हो, फलाकांक्षा से निरपेक्ष हो, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा आदि की कामना से रहित हो और आत्मसमाधि से युक्त हो तो वह अवश्य ही कर्मशत्रुओं का सफाया कर सकती है ।
जैसा कि एक आचार्य ने कहा है
अनादिसिद्ध दुष्कर्म द्व ेषि संघातघातकम् । इदमाद्रियते वीरैः खड्गधारोपमं तपः ॥
- तपोवीरों के द्वारा ही अनादिकाल से संचित दुष्कर्म शत्रुओं के घातक तलवार की तीक्ष्ण धार के समान यह उग्रतप अपनाया जाता है ।
परन्तु मोथरी तलवार की तरह जिस उग्र तपस्या में कोई तेज न हो, जो नामना - कामना, हठाग्रह - दुराग्रह से युक्त हो, जिसके साथ आभ्यन्तर तप न हो, आत्मसमाधि न हो, जिससे विषय कषाय प्रबल हो गये हों, जो तामसिक - राजसिक हो, वह कर्मशत्रुओं को नष्ट करना तो दूर रहा, उलटे कर्मशत्रुओं से पराजित होकर उन्हें जिता देती है । कर्मशत्रु ऐसी मारक उग्र तपस्या से तपः साधक पर हावी हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में उग्र तपस्यारूपी मोथरी तलवार किसी काम की नहीं होती । वह कर्मशत्रुओं का सफाया करने के बदले आत्मगुणों का सफाया कर देती है; दूसरों को हराने के बदले, वह उसके साधक को ही हरा देती है ।
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