________________
उग्रतप को शोभा : शान्ति-१ १४३ बहू ने अपनी प्रतिष्ठा जमाने के लिए कहा-"पिताजी ! आपको भोजन कराये बिना मैं भी भोजन नहीं करूंगी, मैं भी आज उपवास करूंगी।"
सेठ ने उसे प्रोत्साहन देते हुए कहा-"पुत्री ! जैसी तेरी इच्छा ! सुसंस्कारी पुत्रवधू का यही धर्म है।"
बेचारी पुत्रवधू ने कभी उपवास किया नहीं था, किन्तु अब सयानी होने से अपने श्वसुर की आन रखने के लिए उसने उपवास कर लिया।
सेठ उसके शरीर और मन पर उपवास की प्रक्रिया देख रहा था; क्योंकि वह चाहता था कि यह शरीर और मन को साधने के लिए पर्याप्त मात्रा में उपवास करे । परन्तु एक दिन में शरीर पर कोई खास प्रभाव न पड़ा । दूसरे दिन सेठ ने पुत्रवधू से कहा-"बेटी ! आज अमुक तीर्थंकर का जन्म कल्याणक का दिन है, इसीलिए मैं आज दूसरा उपवास करूँगा।"
___बहू ने भी तपाक से कहा- "पिताजी ! मैं भी आज दूसरा उपवास (बेला) करूंगी।"
सेठ ने भी पूर्ववत् प्रशंसा के फूल बिखेर दिये ।
तीसरे दिन भी सेठ ने अमुक तीर्थंकर का निर्वाण कल्याणक कहकर तीसरा उपवास करने को कहा तो बहू ने भी उत्साहपूर्वक अनुसरण किया। सेठ पुत्रवधू के शरीर और मन पर तप से होने वाले प्रभाव का पूरा ध्यान रख रहा था।
चौथे दिन चतुर्दशी थी। अतः सेठ ने कहा- "बेटी ! आज तो चतुर्दशी है, मुझे तो आज भी भोजन नहीं करना है, आज मेरा चौथा उपवास रहेगा।"
पुत्रवधू बोली-“मैं भी आज भोजन नहीं करूँगी, चतुर्दशी को तो उपवास रखना चाहिए।"
सेठ ने पुत्रवधू की प्रशंसा करते हुए कहा-'बेटी ! तुझ-सी धर्मात्मा ललनाओं के प्रताप से यह धरती टिकी है।"
पाँचवे दिन थी पूर्णिमा । सेठ ने कहा- 'मैं तो आज पारणा नहीं करूँगा, क्योंकि आज पर्व दिन है।
पुत्रवधू का शरीर तीसरे ही दिन से शिथिल होने लग गया था। कभी इतना उग्र तप किया न था। फिर भी साहस करके कहा-'मेरे मन में तपस्या से शान्ति रहती है । अतः मैं भी आज पारणा नहीं करूँगी । पाँचवाँ उपवास करूंगी।" पाँचवें उपवास में पुत्रवधू का शरीर और इन्द्रियाँ और शिथिल पड़ जाने से, मन भी शान्त हो गया । मन की गुफा में कामवासना के जो बुरे विचार थे, वे सब काफूर हो गये । तप के प्रभाव से घृणित विचारों के बदले शुद्ध भाव धारा बहने लगी-'प्रभो ! मैं कितनी दुष्टा हूँ। मुझे श्वसुरजी ने सब तरह की स्वतन्त्रता दी, अधिकार दिये, किन्तु मैंने अपने तन-मन पर तप का अंकुश न रखा, जिससे मेरे मन में कुल-कलंकित करने वाले निन्द्य विचार आये । धिक्कार है मुझे ! मुझे तप के अंकुश की तालीम देने के लिए
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org