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आनन्द प्रवचन : भाग १०
है । कदाचित् उसके अन्तर्हृदय में प्रेरणा जगे और तत्त्वज्ञान की किरण मिले तो वह नकली साधु से असली साधु भी बन जाता है ।
यमुना नदी के एक हिस्से में मछलियाँ पकड़ने और मारने का निषेध था । एक दिन निषिद्ध क्षेत्र में एक मच्छीमार मछलियाँ मारने का प्रयास कर रहा था, कि वहाँ अकबर बादशाह आ पहुँचा ।
मच्छीमार ने दूर से ही जब बादशाह को आते देखा तो वह एकदम घबरा गया । संकट से बचने के लिए उसने धूनी जलाई और जाल को आग में फेंककर भस्म कर दिया । वही भस्म शरीर पर रमा ली और अन्य औजार झाड़ियों में फैंक दिये । फिर बह एक महर्षि की तरह ध्यान लगाकर धूनी के पास बैठ गया । बादशाह वहाँ आया । उसने उस मच्छीमार को संन्यासी समझकर श्रद्धापूर्वक नमस्कार किया और अपने गन्तव्य स्थल की ओर बढ़ गया ।
बादशाह के चले जाने पर नकली साधु के हृदय में तत्त्वज्ञान की स्फुरणा जागी । उसने सोचा- वाह ! साधु-वेष का कितना प्रभाव है । इसी वेष के कारण मुझे दिल्ली का सम्राट् भी आकर प्रणाम कर गया। यदि मैं सच्चा तत्त्वज्ञानी साधु बन जाऊँ तो कितना अच्छा हो ।
इस प्रकार तत्त्व-स्फुरणा से वह सच्चे माने में संसार से विरक्त हो गया और साधुवेष को छोड़े बिना ही सच्चा साधु बन गया ।
साधुओं के लिए आदर्श प्रेरक सच्चा साधु
सन्त कबीर ने सच्चे साधु की व्याख्या करते हुए कहा है
गांठी दाम न बाँधई, नहि नारी-सों नेह | कह कबीर ता साध की हम चरणन की खेह ॥ वृच्छ कबहुँ नहि फल भखें, नदी न संचै नीर ।
परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर ||
वास्तव में जो देह, गेह, वस्त्रादि से निरपेक्ष, सन्तोषी, परमार्थी तत्त्वज्ञानी और ब्रह्मचारी सन्त होते हैं, वे ही सच्चे सन्त होते हैं । वे तत्त्वज्ञानी पुरुष स्वयं कष्टसहिष्णु होते हैं, दूसरों द्वारा कहे गये कटुवचनों को सहते हैं, दूसरों को कभी कटु, कठोर, हिंसायुक्त, मर्मस्पर्शी, आघातजनक वचन नहीं कहते । किसी की निन्दा - चुगली नहीं करते, माया-कपट नहीं करते, क्रोध और अभिमान से तथा लोभ से ग्रस्त नहीं होते । जो रस-लोलुप नहीं होते, इन्द्रजाल आदि के चमत्कार नहीं दिखाते। यह स्वयं आत्मश्लाघा नहीं करते, न ही दूसरों से करवाते हैं । वह प्रसिद्धि के चक्कर से दूर रहते हैं । सहजभाव से जो कुछ हो जाए, उसी में सन्तोष मानते हैं । स्त्री हो या पुरुष, बालक हो या वृद्ध, प्रव्रजित हो या गृहस्थ किसी को उसके पूर्व दुश्चरित्र की याद दिलाकर लज्जित नहीं करते, न उसका तिरस्कार करते हैं, न उस पर रोष या द्वेष
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