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________________ आनन्द प्रवचन : भाग १० वह यों कहता जा रहा था कि चोरों ने सुनकर खूब मरम्मत की फिर कहा"यों बोल - आते जाओ, धरते जाओ ।” ८८ रास्ते में कुछ लोग मुर्दे को श्मशान की ओर ले जा रहे थे, उन्हें ये शब्द बहुत बुरे लगे । उन्होंने इस मूर्ख की खूब पिटाई की और कहा - "यों बोल - ऐसा दिन तो कभी न आए।" बोलता हुआ जब गाँव में पहुँचा तो वहाँ गाँव के ठाकुर को पुत्र रत्न की प्राप्ति होने से उत्सव मनाया जा रहा था । इस मूर्ख की अमंगल वाणी सुनकर लोगों को बहुत गुस्सा आया, उन्होंने डंडों से इसकी पूजा की। मूर्ख रोगी ने घर में घुसकर निश्चय कर लिया कि मैं उस चीज को कभी न खाऊँगा, जिसके नाम लेने पर इतना तूफान खड़ा हो गया । वास्तव में यह तूफान खड़ा किया था, मूर्ख ने स्वयं ही । उसने अपनी मूर्खतावश अमंगलसूचक या प्रतिकूल वचन बोलकर लोगों का क्रोध भड़का दिया जिसकी सजा भी उसे पूरी-पूरी मिली । जगह-जगह उसकी अच्छी तरह पूजा हुई । अतः मूर्ख स्वयं ही क्रोध नहीं करता, दूसरों में क्रोध उत्पन्न भी करता है । कोपपरायणता से हानि या लाभ ? मूर्ख प्राय: यह समझते हैं कि हम दूसरे पर कोप करके उसे डाँटे-फटकारेंगे, तो उस पर हमारा दवाब पड़ेगा, हमारी धाक जम जाएगी। आयन्दा वह कभी सिर नहीं उठाएगा, परन्तु यह निरी भ्रान्ति है । किसी पर क्रोध करने से कदाचित कोई दुर्बल व्यक्ति दब जाए, मगर उसके मन में उसकी प्रतिक्रिया किसी न किसी दिन भयंकर रूप में फूट पड़ती है । जाग उठती है और वह सच पूछें तो मूर्ख की कोपपरायणता से कदाचित जरा-सा लाभ दिखाई दे, किन्तु उससे अपार हानि होती है । जिस समय मूर्ख में क्रोध का उफान आता है, उस समय उसे बोलने का भान नहीं रहता, वह शिष्टता, सभ्यता और सौम्यता खो बैठता है | वह क्रोध के समय प्रायः अधिकार की भाषा में बोलता है । इससे उसके प्रति लोगों में नफरत पैदा होती है, लोग उसके निकट नहीं आते, उसके साथ कोई व्यवसाय सम्बन्धी बात नहीं करते । इससे वह सबका स्नेह, आत्मीयता और सहानुभूति गँवा बैठता है | स्नेह और सभ्यता के व्यवहार से वह जो लाभ उठा सहानुभूति, सुरक्षा और सुख-शान्ति पा सकता था, उससे क्रोधावेश में वह जो कुछ कटु वचन बोलता है उससे सामने वाला व्यक्ति शत्रु बन जाता है । क्रोधावेश में कई बार अपनी वस्तु का भी बहुत नुकसान हो जाता है । एक रोचक दृष्टान्त लीजिए सकता था, दूसरे से वंचित हो जाता है । एक अहीर अहीरन घी के घड़े गाड़ी में भरकर निकटवर्ती नगर के बाजार में आए। घी बेचने का सौदा किसी के साथ कर लिया । अहीर गाड़ी में से घी का घड़ा उतारने के लिए नीचे खड़ी हुई अहीरन के हाथ में घड़ा सोंपने लगा । यों घड़े Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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