SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुर्ख नर होते कोपपरायण ८७ यही हालत मूर्ख व्यक्ति के क्रोध की है, वह जरा-सा कटु वचन का अमनोज्ञ शब्द का काँटा चुभते ही, कहने वाले व्यक्ति पर टूट पड़ता है, धड़ाधड़ दस-पन्द्रह गालियाँ बक देता है, अपशब्द कह देता है, पर उससे नुकसान किसका हुआ ? यह उस कुपित होने वाले मूर्ख को नहीं सूझता । इसी सूझबूझ के अभाव में वह क्रोधाविष्ट होकर अपनी शक्ति और सहानुभूति खो बैठता है। मूर्ख यात्री जैसे बाड़ के काँटों से उलझ पड़ा, वैसे ही मूर्ख मनुष्य जरा सी बात पर दूसरों से उलझ पड़ता है। बात में चाहे कुछ भी तथ्य न हो, वह उसे बतंगड़ बना देता है, तिल का ताड़ बनाकर वह उस बात से महाभारत छेड़ देता है । यह है, मूर्खता की निशानी । ___ एक अरबियन कहावत है A fool may be known by six things-anger, without cause; speech, without profit; change, without progress; inquiry, without object; putting trust in a stranger and mistaking foes for friends.” मूर्ख व्यक्ति ६ बातों से जाना जा सकता है(१) बिना ही कारण क्रोध से, (२) बिना लाभ के बोलने से, (३) बिना उन्नति के परिवर्तन करने से, (४) बिना प्रयोजन पूछताछ करने से, (५) अजनबी आदमी पर सहसा विश्वास करने से, और (६) शत्रुओं को मित्र मानने की गलती कर बैठने से । ये और इसी प्रकार के कुछ कारण हैं, जिनसे मूर्ख कुपित होते हैं । मूर्ख क्रोध करता ही नहीं; कराता भी है मूर्ख स्वयं ही क्रोध नहीं करता, अपितु अपने व्यवहार या वचन से दूसरों को भी कुपित कर देता है । मूर्ख के कुछ व्यवहार या वचन ही अजीब ढंग के होते हैं कि वे दूसरे व्यक्ति में सहसा क्रोध भड़का देते हैं। एक रोमी था बड़ा मूर्ख और बेसमझ । उसे वैद्यजी ने दवा दी और खिचड़ी खाने को कहा । रोगी दूसरे प्रान्त का था, न ही पढ़ा-लिखा था, इसलिए अर्थ न समझने के कारण अपने दो मील दूर निवास स्थान की ओर रटता-रटता जा रहा था, "खा चिड़ी, खा चिड़ी।" रास्ते में खेत पर बैठने वाले पक्षियों को उड़ाते हुए किसी किसान ने उसे ऐसा कहते सुना तो पीटा और कहा- “ऐसे कहो-जा चली, जा चली।" आगे पक्षियों को फंसाने के लिए जाल बिछाये एक शिकारी बैठा था, उसने सुना तो अच्छी तरह धुनाई करके कहा- “ऐसे बोलो-आते जाओ, फँसते जाओ।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy