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________________ ८४ आनन्द प्रवचन : भाग १० ___ कई मूर्ख लोग किसी समाज, संस्था या व्यक्ति पर अवसर न देने की शिकायत करते हैं, या परिवार के नेता या माता-पिता की शिकायत करते हैं कि उन्होंने हमें योग्य नहीं बनाया, पढ़ाया-लिखाया नहीं, परन्तु संसार के इतिहास में ऐसे सैकड़ों उदाहरण मौजूद हैं। जिनमें अत्यन्त गरीब, असहाय एवं अनाथ अथवा अपाहिज व्यक्तियों ने किसी की सहायता या अवसर न मिलने की शिकायत नहीं की, वे स्वयं आत्मविश्वास के बल पर आगे बढ़े। परन्तु मूर्ख लोग बात-बात में दूसरों की शिकायत करते रहते हैं, उन पर गुस्सा करते रहते हैं । अपनी योग्यता और पात्रता नहीं देखते। व्यर्थ का झगड़ा : मुर्खता को निशानी मूर्तों के कुपित होने का पाँचवाँ कारण है-व्यर्थ की रार, रास्ते चलते छेड़खानी । 'आ बैल सींग मार' की कहावत के अनुसार मूर्ख बिना किसी कारण के किसी से झगड़ पड़ता है और गुस्से में आग-बबूला हो जाता है। बचपन में एक कहानी पढ़ी थी एक बकरी का बच्चा (मेमना) नदी के संकड़े लट्ठ पर से पार हो रहा था, उधर सामने से एक भेड़िया आ रहा था । भेड़िये ने मेमने से लड़ाई छेड़ दी"अबे ! मेरे रास्ते में क्यों आया ? किसने कहा था कि तू मेरे मार्ग में आये ? तेरी मां ने मेरे साथ टक्कर ली थी, तो अब मैं तेरे से टक्कर लेता हूँ।" यों कहकर मेमने के टक्कर मारी और गुस्से में आकर चल दिया । इस दृष्टान्त का तात्पर्य यह है कि कई मूर्ख ऐसे होते हैं जो 'मान न मान, मैं तेरा मेहमान' की तरह जानबूझकर दूसरों से टक्कर लेते हैं, झगड़ पड़ते हैं, कोई कारण न होते हुए भी गुस्से में आकर लड़ाई ठान बैठते हैं। पूर्वाग्रह : मूर्खता का छठा चिह्न मूखों के कुपित होने का छठा कारण है-साम्प्रदायिक, जातीय, प्रान्तीय आदि किसी भी प्रकार का पूर्वाग्रह । पूर्वाग्रह एक ऐसा रोग है कि वह जिस व्यक्ति के साथ लग जाता है, वह अकारण ही द्वेष, वैर-विरोध, कलह और घृणा करने लगता है। अन्य सम्प्रदाय वाले व्यक्तियों को देखते ही अकारण ही रोष से उबल पड़ता है। ऐसा मूर्ख भी कम खतरनाक नहीं होता। जब किसी व्यक्ति या बात के प्रति पूर्वाग्रह हो जाता है, तब व्यक्ति दूसरे की कही हुई हित की बात पर भी ध्यान नहीं देता; बल्कि जिस व्यक्ति के प्रति पूर्वाग्रह हो जाता है, उस व्यक्ति को उखाड़ फेंकने का प्रयत्न करता है। वह मन ही मन उसके प्रति कुढ़ता रहता है । क्रोधानल के आन्तरिक दाह से वह मूर्ख क्लेश पाता रहता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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