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आनन्द प्रवचन : भाग १०
एक बोला- "वह तो बूढा है।" दूसरे ने कहा- “नहीं जी, वह जवान है ।' तोसरा बोला-'वह तो बालक-सा है।"
चौथे ने कहा- "अरे यारो ! क्यों फिजूल की बकवास कर रहे हो ? कुछ लेना, न देना, व्यर्थ की इल्लत मोल ले रहे हो।"
इस पर सब उसे झिड़कते हुए कहने लगे-“वाह ! यह भी कोई बात है ? हम अपनी सच्ची बात भी प्रकट न करें? हमने राजा को जिस रूप में समझा है, वह भी न कहें ?"
इस प्रकार व्यर्थ का वाद-विवाद करते-करते वे आपस में लड़ने झगड़ने और गाली गलौज करने लगे। समय काफी बेकार चला गया, शाम होने को आई, पर इस विवाद में उलझकर उन्होंने काम कुछ भी न किया । सन्ध्या समय राजा के सिपाही आए। विवाद करने वाले उन तमाम मजदूरों को पकड़कर अधिकारी के सामने ले गये और कहने लगे-“साहब ! महाराजा का बड़ा महल बनवाने के काम में इन मजदूरों को रखा गया था, पर इन्होंने आज रत्तीभर भी काम न किया, आपस में वादविवाद और लड़ाई-झगड़े में सारा समय खो दिया। अतः इन्हें सजा देनी चाहिये।"
अधिकारी ने उन सब मजदूरों से पूछा--'बोलो, तुम क्या कहना चाहते हो? तुम लोगों ने आज काम क्यों नहीं किया ?"
इस पर उन मजदूरों ने आपबीती सारी बात कह सुनाई । अन्त में कहा"हम तो महाराजा की ही बात कर रहे थे, और कोई खराब बात तो नहीं कर रहे थे ? उन बातों में रह जाने से काम नहीं हो सका।"
यह सुनकर अधिकारी ने कहा-"यह बहानेबाजी नहीं चलेगी। तुम्हें काम के लिए रखा था या बातें बनाने को ? बातें बनानी थीं, तो घर ही रहते, यहाँ किस लिये आये थे ? महाराजा दयालु हैं या कठोर, काले हैं या गोरे, मूंछे रखते हैं या नहीं, जवान हैं या बूढ़े, दाढ़ी रखते हैं या चोटी ? इन सब बातों के बिना तुम्हारा कौन-सा काम अटका पड़ा था ? इन सब बातों को जाने बिना तुम्हारा क्या बनताबिगड़ता था ? तुम्हारा कर्तव्य था, राजमहल का निर्माण कार्य करना, उसमें तुम लगे नहीं और व्यर्थ की बहस में लग गये। इसलिए तुम सब नालायक हो । तुम्हें आज का वेतन नहीं मिलेगा । मुंशीजी ! जेलर से कहो कि जिन-जिनने काम नहीं किया, आपस में लड़े-झगड़े उनका पिछला वेतन जब्त कर लो, और कैद में डालकर उनसे सख्त मेहनत कराओ।"
भाइयो ! यह है मूखों की असली पहचान; जो असली काम से हाथ नहीं लगाते और व्यर्थ की बकवास, बहस और तकरार करते रहते हैं।
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