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मूर्ख नर होते कोपपरायण ७६ जाता है। काम करने वाला मालिक काम कराने के बदले व्यर्थ का तूफान मचाकर समय बर्बाद करने वाले मूल् को अपमानित करके नौकरी से हटा देता है।
एक राजा का बड़ा महल बनवाया जा रहा था। उसके निर्माण कार्य में हजारों मजदूर लगाये गये थे। राजा अपनी राजधानी में रहता था । महल पास के दूसरे गाँव में बनाया जा रहा था । इसलिए इन हजारों श्रमिकों में से किसी ने राजा को प्रत्यक्ष नहीं देखा था। इतने विशाल और अद्भुत कला-कौशलपूर्ण बनवाये जाते हुए राजमहल को देखकर कई मजदूर परस्पर बातें करने लगे-"जिसका इतना विशाल राजमहल है, वह राजा कितना बड़ा होगा ? वह कैसे-कैसे बहुमूल्य वस्त्राभूषण पहनता होगा ?"
इस पर दूसरे मजदूर ने कहा-"नहीं जी ! वह तो बिलकुल सीधा-सादा है, बहुमूल्य गहने-कपड़े नहीं पहनता ।"
इसी बीच एक मियाँ भाई बोल उठा- “उसकी दाढ़ी बड़ी मजे की होगी।"
इसका प्रतिवाद करते हुए एक हिन्दू मजदूर बोला- "अजी ! वह दाढ़ी रखता ही नहीं । उसके सिर पर तो चोटी है।"
एक मजदूर बोला- "वह बहुत स्वादिष्ट भोजन करता होगा।" दूसरे ने कहा-"वह तो प्रायः उपवास ही करता होगा।" एक मजदूर ने कहा- "उसकी नजर सब ओर पड़ती है।"
दूसरे ने कहा- "वह कहीं नजर डालने को निकम्मा नहीं बैठा है। वह तो अपने महल में आनन्द से बैठा रहता है, किसी को दर्शन भी नहीं देता।"
किसी मजदूर ने कहा-"वह तो चातुर्य का भण्डार है।"
दूसरे ने उसकी बात को काटते हुए कहा-"अरे ! वह चातुर्य का भण्डार होता तो हम उसकी रैयत होते हुए भूखे क्यों मरते, दुःखी क्यों रहते ?"
एक ने कहा- "मेरा खयाल है, वह पीले कपड़े पहनता है।" दूसरा तमककर बोला- "बिलकुल झूठ ! वह तो सफेद वस्त्र पहनता है।" फिर एक बोला--"उसकी मूंछे बहुत बड़ी-बड़ी हैं।"
दूसरा बोला- "तुझे कुछ पता ही नहीं है, यों ही होके जाता है । वह मूंछे ही कहाँ रखता है ?"
इतने में एक बोला--"वह अपनी प्रजा पर बहुत प्रेम करता है।"
दूसरे ने कहा-"उसमें तो प्रेम का नाम ही नहीं है। प्रेम होता तो इतना कठोर दण्ड क्यों देता ?"
एक मजदूर ने कहा- "तब तो वह रंग का काला होगा।" दूसरा बोला-"नहीं जी, वह तो गोरा और सुन्दर है।"
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