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________________ ३६२ आनन्द प्रवचन : भाग ६ हाँ, मैं जान गया यह तोल्लड राग है।" इस पर उसके साले हँसी को रोक न सके । इस प्रकार संगीत विद्या से अनभिज्ञ मूर्ख अपना चातुर्य बताने गया लेकिन हुआ वह हंसी का पात्र ही । इसी प्रकार जो जिस विषय में बिलकुल नहीं जानता या अधूरा जानता है, वह यदि उस अध्यात्मतत्त्व के विषय में किसी से कहता है तो हास्यास्पद ही बनता है । कथासरित्सागर में कहा है ___ "अज्ञतानाम कस्येह, नोपहासाय जायते ?" 'अजता किसको हास्यास्पद नहीं बना देती ?' परमार्थ के अज्ञानी : ऊंटवैद्य की तरह . प्रायः देखा जाता है कि किसी परमार्थ विषय में अज्ञानी मनुष्य उड़ान तो बहुत दूर की भरता है, बातें भी बहुत ही लम्बी-चौड़ी करता है, लेकिन ज्ञान के प्रकाश को देख सकने की उसकी आँखें नहीं होती। पाश्चात्य विद्वान् जॉर्ज हर्बर्ट (George Herbert) के शब्दों में देखिये "The ignorant hath an eagle's wings and an owl's eyes." 'अज्ञानी व्यक्ति के पाँखें तो गिद्ध की होती हैं, लेकिन आँखें होती हैं उल्लू की।' ऐसे अज्ञानी व्यक्ति प्रायः अन्धानुकरण करते हैं, वे न तो किसी दूसरे अनुभवी से कोई बात समझते या पूछते हैं, और न स्वयं ही अध्ययन-मनन करके अपने अज्ञान को मिटाते हैं, उलटे वे अपने आपको ज्ञाननिधि बताने का डोल करते हैं। एक शहर में एक नामी वैद्यजी थे। वे बहुत ही कुशलता और युक्तिपूर्वक रोगों की चिंकित्सा करते थे। उनके पास एक नौसिखिया रहता था, जो दवाइयाँ कूटता और पुड़िया बाँधकर रोगियों को देता था। एक दिन वैद्यजी के पास एक व्यक्ति अपना ऊँट लेकर घबराया हुआ आया और कहने लगा-"वैद्यजी, जरा मेरे ऊँट का इलाज कर दीजिए, इसके गले में कल से कुछ अटक गया है, इस कारण यह कुछ खा नहीं सकता, केवल चिल्लाता रहता है।" वैद्यजी ने ऊँट को भलीभाँति टटोलकर देखा । गला जहाँ फूला हुआ था, उस स्थान को हाथ से स्पर्श करके देखा । रोग उनकी समझ में आ गया। उन्होंने ऊँट के मालिक से कहा- "देखो भैया, ऊँट की पीड़ा मैं दूर कर दूंगा, उसे स्वस्थ भी कर दूंगा। मेरे इलाज और श्रम के पच्चीस रुपये लूंगा।" ऊँट के मालिक ने स्वीकार किया। उन्होंने एक हाथ में लकड़ी का एक हथौड़ा लिया और ऊँट के गले के नीचे दूसरा हाथ रखा, फिर दो चोटें हथौड़े की लगाई, इससे गले में जो तरबूज अटका हुआ था, वह फूट गया और ऊँट अब उसे अच्छी तरह चबाकर खाने लगा, वह स्वस्थ हो गया । ऊँट के मालिक ने वैद्य को धन्यवाद सहित २५) रुपये दे दिये और ऊँट को लेकर प्रसन्नतापूर्वक लौटा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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