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________________ ३४२ आनन्द प्रवचन : भाग ६ उधर मुड़ सकती है और बुराई की ओर मोड़ा जाए तो उधर भी। इसीलिए पश्चिमी विचारक ब्यूमोंट (Beaumont) कहते हैं "Interest makes some people blind, and others quicksighted." __ "रुचि कुछ व्यक्तियों को अन्धे बना देती है, और अन्य व्यक्तियों को तेज दृष्टि वाले।" यह तो रुचिवान पर या रुचि जगाने वालों पर प्रायः निर्भर है कि वे रुचि को किस ओर घुमाते हैं । एक उदाहरण द्वारा इसे स्पष्ट करना उचित होगा ___एक गांव में पं० शामलभट आये। वे प्रतिदिन भागवत्कथा करने लगे। भटजी की वाणी में बहुत ही माधुर्य और रसिकता थी, इसलिए श्रोतागण दिन-परदिन बरसाती नदी की भाँति उमड़ने लगे । रात्रि में देर तक कथा चलती। लोग कथा समाप्ति पर भटजी की उपदेश शैली की प्रशंसा करके बिखर जाते । एक दिन कथा का समय हो गया था, लेकिन श्रोतागण सिर्फ २०-२५ ही आये थे । भटजी को आश्चर्य हुआ कि रोज तो सैकड़ों की संख्या में कथारसिक लोग आते थे, आज २०-२५ ही क्यों ? काफी समय तक प्रतीक्षा करने के बाद उन्होंने लोगों से पूछा- "क्या आज गाँव में कोई उत्सव है या और कोई विशेष बात है ?" एक भावुक श्रोता ने कहा - "कृपानिधान ! उत्सव आदि तो कुछ नहीं है, परन्तु गाँव के उस चौराहे पर भवैये (नाटक मंडली वाले) आये हुए हैं, प्रायः ग्राम्य जनता उस और उमड़ पड़ी है।" उस रात को भटजी ने भागवत कथा तो की, लेकिन अनमने-से होकर । कथा के बाद उन्हें रात भर नींद नहीं आई। सुबह होते ही भटजी नहा-धोकर सन्ध्या-पूजा करके भवैयों के डेरे पर जा पहुँचे । भवैयों ने भटजी का सत्कार किया। भटजी ने सीधी बात कही- "मेरी कथा में आजकल लोग आने बंद हो गये हैं, सभी तुम्हारे नाटक में आते हैं।" भवैयों का नेता बोला-"भटजी ! यह तो जनता है, जिधर रुचि होती है, वहीं जाती है।" भटजी ने पूछा- "इस गाँव में कितने दिन डेरा रहेगा तुम्हारी मण्डली का ?" भवैयों का नेता बोला—'क्यों भूखे मर रहे हैं क्या, भटजी ? दो दिन का सीधा (भोजन का सामान) यहाँ से ले जाना और तीसरे दिन भागवत की पोथी बाँधकर चल धरना।" शामल भट यह सुनकर एकदम क्षब्ध और खिन्न होगए, परन्तु बोले कुछ नहीं । चुपचाप तेजी से पैर उठाकर अपने डेरे पर आये । भवैये भटजी को जाते देख ठहाका मारकर हँसने लगे । गाँव में भवयों का नाटक जोर-शोर से चल पड़ा, सारा गाँव उसे देखने उमड़ता। इधर भटजी ने मन मसोसकर कथा बन्द कर दी। भागवत को वंदन करके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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