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आनन्द प्रवचन : भाग ६
के बिना इनका व्यवहार एक दिन भी नहीं चल सकता जिस परिवार आदि में जितनी अधिक सत्यनिष्ठा होगी, उस परिवारादि का अस्तित्व उतना ही सुदृढ़ होगा। उसे पल्लवित-पुष्पित होने का उतना ही सुअवसर मिलेगा। सत्यशरण से भगवत्प्राप्ति
भारतीय धर्मों में सत्य को भगवान माना गया है। जैसा कि प्रश्नव्याकरण सूत्र में कहा गया है
'तं सच्चं खु भगवं' ——वह सत्य ही भगवान् है।
सत्य को नारायण कहा गया है । सत्यनारायण भगवान की जय बोलने, कथा सुनने एवं व्रत रखने का हिन्दुओं में बहुत प्रचलन है, किन्तु वे उसका रहस्य नहीं समझते । सत्यनारायण कोई व्यक्ति या देवता नहीं, वरन् सचाई को अन्तःकरण, व्यवहार और मस्तिष्क में प्रतिष्ठापित करने की प्रगाढ़ आस्था ही है । जो सत्यनिष्ठ है, वही सत्य की शरण ग्रहण करता है, वही सत्यनारायण का भक्त एवं साधक है । सत्यशरण ग्रहण किये बिना केवल कथा सुनने आदि से कोई भगवान नहीं बन सकता। इसलिए सत्यनिष्ठ होकर शरण लेने से ही भगवत्प्राप्ति होती है।
___महात्मा गांधी भी सत्य को भगवान मानते थे। वे कहते थे कि सत्य और अहिंसा मेरी दो आँखें हैं। उनको छोड़कर वे स्वराज्य की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। क्योंकि ईश्वर सर्वव्यापक है, इसलिए सत्य की शरण मानने वाला साधक सारे संसार को अपना मानता है, वह सत्य के द्वारा सारे विश्व में फैल जाता है । सत्य : साधनाजीवन का मूलाधार
सत्य समस्त उपलब्धियों का मूल आधार है। तंत्रसिद्धि, मंत्रसिद्धि, आदि सब सत्य पर निर्भर है । यदि मंत्र जाप के साथ मनुष्य सत्यनिष्ठ न रहे तो उसकी साधना खण्डित हो जाती है, वह प्रभावशाली नहीं हो पाती । अतः सत्य साधनाजीवन का मूलाधार है।
___इसी प्रकार जितने भी नियम, व्रत, तप, जप, या त्याग-प्रत्याख्यान हैं, वे सब सत्य के साथ ही यथार्थ व प्रभावशाली होते हैं । अगर इनके साथ सत्य न हो तो ये दम्भयुक्त हो जाते हैं। इनमें अहंकार के कीटाणु प्रविष्ट हो जाते है। अहिंसा आदि महाव्रतों या अणुव्रतों के साथ भी सत्य अपेक्षित है । जीवन के हर मोड़ पर सत्य की आवश्यकता है । सत्य की ही सदा जय होती है, असत्य की नहीं। असत्य कागज की नौका की तरह है। वह कभी तारने वाला नहीं होता। असत्य में कोई बल नहीं होता, सत्य में ही असीम बल होता है । कदाचित् कोई व्यक्ति असत्य का आश्रय लेकर फले-फूले तो इससे यह नहीं समझना चाहिए कि यह उसके वर्तमान असत्याचरण का फल है किन्तु उसके पूर्वकृत सत्कार्यों के फलस्वरूप उसे ये सुख
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