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सत्यशरण सदैव सुखदायी १५
मरणासन्न है, मुझे किले में जाने दीजिए ।" सेनानायक ने कहा - " अगर आप न लौटे तो ?" रघुपतिसिंह बोला - "राजपूत कभी झूठ नहीं बोलता । "
वास्तव में सत्यवादी जो वचन कह देता है, उससे फिरता नहीं । वाल्मीकि रामायण में कहा है—
नहि प्रतिज्ञां कुर्वन्ति, वितथां सत्यवादिनः । लक्षणं हि महत्वस्य प्रतिज्ञा - परिपालनम् ॥
सत्यवादी झूठी प्रतिज्ञा नहीं करते । प्रतिज्ञा का पालन ही महानता का लक्षण है ।
इस पर उसे किले में जाने दिया । वह पुत्र से मिलकर वापस सेनानायक के पास लौटा और कहा – “लो, मुझे पकड़ लो अब ।" उसे लेकर सेनानायक सेनापति के पास पहुँचा । रघुपतिसिंह की सत्यनिष्ठा एवं आत्मसमर्पण का विवरण सुनकर सेनापति ने कहा - " आप स्वतंत्र हैं जाइए! ऐसे सत्यनिष्ठ सच्चे वीर को मारकर मैं अपने हाथ गंदे नहीं कर सकता । "
राजनीति में भी सत्यशरण का प्रभाव महात्मा गांधी ने तो राजनीति में भी सत्य की शरण स्वीकार कर ब्रिटिश सरकार के गुप्तचर विभाग को आश्चर्य में डाल दिया था । खुफिया पुलिस विभाग के एक ऑफिसर से गांधीजी को जब यह पता लगा कि वह उनकी दैनिक चर्या की खबर लेने आता है, तब वे उसे प्रतिदिन की रिपोर्ट किसी बात को बिना छिपाए बहुत साफ टाइप कराकर देने लगे । इसे देखकर ब्रिटिश सरकार को गांधीजी की सत्यनिष्ठा और राजनीति में अगुप्तता देखकर उन पर पूरा विश्वास जम गया । वास्तव में जो व्यक्ति सत्यशरण ग्रहण कर लेता है, उसे किसी से कोई बात छिपाने की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि वह कोई भी ऐसा गलत काम या पाप नहीं करता, जिसे छिपाना पड़े । जिसने सत्य के कवच को धारण कर लिया है, वह निर्भय निर्द्वन्द्व होकर विचरण करता है, स्पष्ट होकर व्यवहार करता है । वह अजातशत्रु होकर समाज को अपने व्यवहार से जीत लेता है । उसके सामने किसी की असत्य बोलने की हिम्न नहीं होती ।
सत्य : जगत् का आधार
सत्य इसलिए भी शरण ग्रहण करने योग्य है कि वह सारे जगत् का आधार है । जब तक सत्य का एक कण भी जिन्दा है, तब तक यह पृथ्वी स्थिर रहेगी । सत्य के बल पर ही यह विश्व टिका हुआ है। संसार का सारा व्यवहार इसी आधार पर चल रहा है । मनुष्य जाति जिस दिन सत्य का पल्ला छोड़ देगी, उस दिन वह स्वयं महा विनाश के गर्त में गिर जाएगी । सत्य से जीवन और जगत् का उद्धार हो सकता है । सत्य से ही कोई परिवार, संस्था, जाति, राष्ट्र आदि चिरस्थायी रह सकते हैं । सत्य
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