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________________ ३३६ आनन्द प्रवचन : भाग ६ दान्त हैं, जिन्होंने पापों के स्रोतों को काट दिया है, जो आस्रव-रहित हैं, वे ही शुद्ध परिपूर्ण अतुलनीय धर्म का उपदेश दे सकते हैं।" इसके अतिरिक्त जिस वक्ता में दूसरों के दोष देखने, दूसरों को नीचा दिखाने या कठोर मर्मस्पर्शी अपशब्द कहने की वृत्ति न हो, जिसकी वाणी में मधुरता, सरसता हो, जिसकी दृष्टि अनेकान्तवाद-सापेक्षवाद से ओत-प्रोत हो, किसी पर कटाक्ष या पक्षपात करने की दृष्टि न हो, जिसकी वाणी में अनुचित छींटाकशी से परहेज हो, निःस्पृहता हो, दूसरों का मन मोह लेने की क्षमता हो, जिसके हृदय में आत्मीयता, सहृदयता एवं सहानुभूति हो, आश्वासन और उत्साह जगाने वाला सन्देश हो, वही वक्ता श्रोताओं पर अपनी वाणी का चिरस्थायी प्रभाव डाल सकता है। मार्टिन लूथर ने उपदेशक की योग्यता के सम्बन्ध में सुन्दर बातें कही हैं "The defects of a preacher are soon spied. Let him be endued with ten virtues and have but one fault and one fault will eclipse and darken all his virtues and gifts, so evil is the world in these times." "उपदेशक के दोष शीघ्र ही प्रगट हो जाते हैं। इसलिए उसे दस गुणों से तो सम्पन्न होना चाहिए मगर दुर्गुण या दोष एक भी न होना चाहिए । एक भी दोष चन्द्रग्रहण के समान लग गया तो उसके तमाम गुणों और क्षमताओं को अन्धकारावृत कर देगा । इन दिनों संसार ऐसा ही बुरा है।" अतः उपदेशक को बहुत ही सतर्क होकर अपनी उपदेशधारा बहानी चाहिए। बाबा दीनदयाल गिरि ने बादल के बहाने उपदेशक को प्रेरणा दी है बरखै कहा पयोद इत, मानि मोद मन मांहि । यह तो ऊसर भूमि है, अंकुर जमिहै नांहि ॥ अंकुर जमिहै नांहि, बरष सत जो जल दैहै । गरजै-तरजै कहा, वृथा तेरो श्रम जैहै । बरनै दीनदयाल, न ठौर-कुठौरहि परखै । नाहक गाहक बिना, बलाहक ह्यां तू बरखै ॥ एक बादल को लक्ष्य करके कवि कहता है-अरे बादल ! तेरे पास विपुल जल सम्पदा है इसलिए मन में प्रमुदित होकर क्यों यहाँ बरस रहा है। यहाँ तो ऊसर भूमि है, जहाँ एक भी अंकुर पैदा नहीं होगा चाहे तू सैकड़ों वर्षों तक जल बरसाता रहे। और फिर तू यहाँ व्यर्थ गर्जन-तर्जन भी क्यों कर रहा है ? तेरा यह श्रम भी व्यर्थ जाएगा । अरे बादल ! तू उचित और अनुचित स्थान को भी नहीं देखता, फिर बिना ही गाहक के नाहक तू क्यों यहाँ बरसता है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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