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आनन्द प्रवचन : भाग ६
सोमारानी के रेशम-से मुलायम गुच्छेदार लम्बे वालों पर गूंथी हुई फूलों की वेणी सिंहसेन देखता तो वह उसके अतिशय गौरवर्ण चाँद-से मुख पर मुग्ध हो उठता । इसी कारण सौन्दर्यमूढ़ सिंहसेन का अपनी ४६६ पत्नियों पर आदर और स्नेह कम होने लगा। इस उपेक्षा के फलस्वरूप वे सब स्त्रियाँ प्रतिदिन विचार किया करती थीं, और मन ही मन ऊब जाती थीं कि अब हम क्या करें ? सोमारानी के प्रति उनके मन में सौतिया डाह पैदा हो गया। एक दिन सोमारानी की खास दासी ने जब इन ४६६ रानियों का रवैया देखा तो उसने गुप्त रूप से यह बात अपनी प्रिय स्वामिनी सोमारानी के कानों में पहुँचा दी । सोमारानी के मन में अपनी ४६६ सौतों के प्रति घृणाभाव तो था ही, अब और बढ़ गया। उसने मन ही मन युक्ति सोच ली और उनका सफाया कराने की ठान ली। - ज्यों ही राजा सिंहसेन उसके शयनकक्ष में प्रविष्ट हुए सोमारानी को उदास और गुम-सुम बैठी देख उन्होंने उससे ऐसा होने का कारण पूछा। सोमारानी ने त्रिया चरित्र करते हुए कहा-"प्राणनाथ ! मैं आज इस विचार से कम्पित हो उठी कि अगर कोई आपको मेरे से छीन ले तो फिर मेरा और कोई नहीं है।" __ मोहमूढ़ सिंहसेन ने गर्व से कहा-'किसकी ताकत है, जो मुझे तुझसे छीन ले ।'
तीर निशाने पर लगता देख सोमारानी ने आँसू बहाते हुए कहा-"प्राणनाथ ! मुझे विश्वस्तसूत्र से ज्ञात हुआ है कि मेरी ४६६ सौतें मेरा अनिष्ट करने की फिराक में हैं। उस समय मेरा क्या होगा ? इस विचार से ही मैं काँप उठती हूँ। नाथ ! मैं अकेली और वे तो ४६६ हैं। मुझे तो वे एक कोने में धकेलकर चटनी बना सकती हैं। हाय नाथ ! मुझे बचाइए।"
सिंहसेन ने उसे निर्भय करते हुए कहा- "प्रिये ! ऐसी चिन्ता न करो। किस की मजाल है, जो तुम्हारा बाल भी बाँका कर सके। तुम यह क्यों भूल जाती हो कि मैं अकेला ही इन सब स्त्रियों को कत्ल कराने का सामर्थ्य रखता हूँ।"
___ सोमारानी ने जलते हुए हृदय से कहा- "परन्तु प्राणनाथ ! ऐसा करना बहुत कठिन है । उनके पीहर का पक्ष भी तो बहुत प्रबल है, वह आप पर आफत ला सकता है।
___ "अरी ! ये स्त्रियाँ तो ठीक, परन्तु इनके पीहर के सभी व्यक्तियों का भी मैं तेरे प्रेम के लिए कचूमर निकाल सकता हूँ, फिर तुझे क्या चिन्ता है ?" राजा ने कहा।
... सोमारानी-“पर नाथ ! यह कार्य बहुत ही भागीरथ है । यह कार्य आसानी से थोड़े ही हो सकता है ?" . सिंहसेन-"क्यों नहीं हो सकता ? तेरे प्रेम के लिए आकाश के तारे तोड़कर लाने की भी शक्ति मुझमें है, समझी ?"
- सोमारानी-"यह समझ में कैसे आए ? अत्यन्त दुष्कर कार्य है यह ! आप कुछ कर बताएँ तो जानूं ! कहना आसान है, पर करके बताना कठिन है। नाथ !
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