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________________ बुद्धि तजती कुपित मनुज को ३२७ शाह के अधीन होना पड़ा । उसका सतीत्व नष्ट हो गया। इतना ही नहीं, उसे बादशाह की बेगम बनकर रहना पड़ा । यह है काम-कुपित व्यक्तियों की बुद्धिभ्रष्टता के कारण होने वाले सर्वनाश का ज्वलन्त उदाहरण ! कामान्ध ययाति का उदाहरण मैं पहले दे चुका हूँ । उसने भी काम-प्रकोप वश अपना तप, पुण्य, धर्म, यश, यौवन, शरीर, इन्द्रियाँ, मन आदि सर्वस्व फूँक दिया । जिस व्यक्ति में वृद्धावस्था में काम - कुपित हो जाता है, उसका तो पूछना ही क्या ? वह अपनी तो दुर्गति करता ही है, अपनी पत्नी और सन्तान की भी दुर्गति करता है । तीव्र कामेच्छा मनुष्य को बलात् पतन की ओर खींचती है । अगर व्यक्ति कामावेश में आकर तुरन्त उधर झुक जाता है तो उसे सर्वनाश की घड़ी देखनी पड़ती है । इसलिए कामुक विचार के आक्रमण होते ही तुरन्त निर्णय न लेना हितावह होता है । थोड़ी देर रुककर एकान्त में जाकर उस पर गहराई से विचार करना चाहिए । हिताहित का यथोचित विचार किये बिना ही कामवासना की ओर लुढ़क जाने से भयंकर हानि उठानी पड़ सकती है । अतः कामावेश से बचने का उपाय यही है कि काम की आक्रस्थिति को कुछ देर के लिए टाल दिया जाय । भारतीय संस्कृति के एक अमर गायक ने बहुत ही सुन्दर प्रेरणा दी है— 1 कामक्रोध लोभमोहौ, देहे तिष्ठन्ति तस्कराः । ज्ञानरत्नापहाराय, तस्माज्जाग्रत जाग्रत ॥ मानव शरीर में काम, क्रोध, लोभ और मोह रूपी चोर उसके ज्ञानरत्न चुराने की फिराक में रहते हैं, इसलिए श्रेयार्थी को इनसे प्रतिक्षण जागृत रहना चाहिए । मोह से कुपित होने पर यही दशा मोह से कुपित व्यक्ति की होती है । मोहाविष्ट व्यक्ति भी अपनी बुद्धि का दिवाला निकाल देता है । उसे भी अपने हिताहित का ध्यान नहीं रहता । रूपाली - बा के मोहान्ध पति का उदाहरण आप सुन चुके हैं। कितना भयंकर परिणाम आया था, यह भी आप सुन चुके हैं। मोह - कुपित का एक ओर उदाहरण प्रस्तुत करता हूँ उस मोहाविष्टता का विपाकसूत्र में अंकित - सिंहसेन । सुप्रतिष्ठित नगर के राजा महासेन का इकलौता लाड़ला पुत्र था - 1 यौवनवय में आते ही उसका रूप, सौन्दर्य, देहसौष्ठव, बल, बुद्धि, पराक्रम देखने ही लायक था। चतुर राजकुमार सिंहसेन ने एक-दो नहीं, पाँच सौ कन्याओं के साथ विवाह किया था । जहाँ-जहाँ वह रूपवती सुन्दरी को देखता, उसकी मांग उसके अभिभावकों के पास पहुँचा देता और उसके साथ पाणिग्रहण करता । वैभव-विलास और यौवन मद में छके हुए सिंहसेन को महा रूपवती चतुर सोमारानी सर्वाधिक प्रिय थी, उसे ही उसने अपनी पटरानी बना दिया था । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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