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________________ ३१६ आनन्द प्रवचन : भाग ६ लन बिगड़ गया था। मेरे धैर्य, विवेकबुद्धि और साहस इतने पंगु हो गये थे, मुझ सूझ ही नहीं पड़ता था कि मैं क्या करूँ ?" पाश्चात्य दार्शनिक प्लेटो ने ठीक ही कहा है "The passionates are like men standing on their heads, they see all things the wrong way.” 'आवेशग्रस्त व्यक्ति उन व्यक्तियों की तरह है, जो अपने सिर के बल पर (शीर्षासन करके) खड़े हैं, वे सभी बातें उलटी दिशा में सोचते, देखते हैं।' बहुत से लोग क्रोध या क्षोभ के समय बिलकुल राक्षसों का-सा रूप धारण कर लेते हैं। ऐसे लोग जब क्रोधाविष्ट होते है तो अपने सामने जो कुछ पाते हैं, उठा-उठाकर फैकने लगते हैं. या जो सामने आता है, उसी को मार बैठते हैं । जो लोग उन्हें समझा-बुझाकर शान्त करने आते हैं, उन्हें भी वे गालियां देने या अपशब्द कहने पर उतारू हो जाते हैं । ऐसे लोग छोटे-छोटे बच्चों और पशुओं आदि तक को मारते-मारते बेदम कर देते हैं। जब उन पर क्रोध का भूत सवार होता है, तब उन्हें आगा-पीछा या अच्छा-बुरा कुछ भी नहीं दिखाई देता । ऐसे लोग गुस्सा उतर जाने के बहुत देर बाद तक भी बिलकुल बेसुध और बेकाम से रहते हैं, उस समय वे न तो कुछ सोच-समझ सकते हैं, और न ही कुछ कह या कर सकते हैं। अमेरिका में एक ऐसा परिवार था, जिसके छोटे-बड़े सब आदमी मिलकर लड़ने लग जाया करते थे और ऐसे लड़ते थे कि देखने-सुनने वाले दंग रह जाते थे। वे आपस में एक-दूसरे को खुब नोचते, खसोटते थे और कपड़े-लत्ते फाड़ डालते थे। उस समय उनके चेहरे बिलकुल बदल जाते थे। वे पहचाने नहीं जाते थे। उन्हें देखने से ऐसा मालूम पड़ता था, मानो बहुत से शैतान आपस में लड़ रहे हों। भला इस प्रकार के आवेशमय वातावरण से द्वष, वैर, विरोध, शत्रुता और वैमनस्य बढ़ने के सिवाय और भयंकर पापकर्म-बन्धन के सिवाय और क्या नतीजा निकल सकता है ? ऐसे ही अवसरों पर आवेशग्रस्त लोग अपने परिवार के किसी आदमी को हत्या तक कर बैठते हैं। ऐसे क्रोधान्ध बाद में बहुत पछताते हैं। पर उस समय पछताने से क्या होता है ? कई बार लोग जरा-सी बात या जरा से अपमान-कल्पित अपमान के कारण किसी से बहुत चिढ़ जाते हैं, और आवेश में आकर वर्षों तक उससे बदला लेने की उधेड़बुन में लगे रहते हैं। उनकी बुद्धि वर्षों तक ठीक नहीं होती। एक ऐतिहासिक उदाहरण लीजिए काठियावाड़ के एक कस्बे में मेघाशा नाम के सेठ थे। उनकी पत्नी का नाम रूपाली बा था। सेठ रूपाली बा पर इतने आसक्त थे कि वह कहती, वैसे ही सेठ को चलना पड़ता । एक दिन कुछ पड़ौसिनों के साथ रूपाली बा घूमने निकली । घूमतीघूमती वे सभी कुंभार के यहाँ बर्तन खरीदने पहुँच गई । सबने अपनी इच्छानुसार बर्तन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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