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________________ बुद्धि तजती कुपित मनुज को ३१५ रण पर शक हो जाने पर गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी थी। समाचारपत्रों में आए दिन इस प्रकार की आवेशजनित दुःखद घटनाएँ पढ़ने को मिलती हैं । आवेश के अन्धड़ और तूफान में मनुष्य के विवेक की रोशनी बुझ जाती है। दूसरे का राई भर दोष पर्वत-सा दीखता है। बहुत बार तो उस आवेशग्रस्त स्थिति में इतनी कुकल्पनाएँ और कुशंकाएँ उठती हैं कि दूसरा व्यक्ति बुरे से बुरा दीखने लगता है । मस्तिष्क उत्तेजना में सही बात सोच नहीं पाता । आवेश में सामने वाला दोषी ही नहीं, शत्रु भी दीखता है। जिस प्रकार किसी पर आक्रमण किया जाता है, इसी प्रकार की परिस्थितियाँ बन जाती हैं। इससे सामने वाले को भी प्रतिशोध और प्रतीकार में खड़ा होना पड़ता है। तनिक-सी बात का बतंगड़ बन जाता है और इतना बड़ा विग्रह खड़ा हो जाता है कि उसकी क्षतिपूर्ति करनी कठिन हो जाती है। मित्र शत्रु बन जाते हैं और जहाँ से सहयोग को आशा थी, वहाँ से विरोध और अवरोध प्राप्त होने लगता है। ऐसी आवेशमयी परिस्थितियों में कई बार ऐसा कटु व्यवहार बन जाता है, जिसका घाव जिंदगीभर नहीं भरता, अपने सदा के लिए पराये हो जाते हैं। क्रोधावेश में आकर बहुत से लोग अपनी नौकरी या मर्यादा आदि खो बैठते हैं। एक ऑफिसर के विरुद्ध मुकदमा चला, क्योंकि उसने अपने मातहत कर्मचारी के थप्पड़ मार दिया था। जब उसका बयान लिया गया तो उसने कहा-"हम दोनों आवेश में पागल हो गये थे। उत्तेजना में भूल गये थे कि क्या कर रहे हैं। मेरे मन में डर था यदि मैंने अधीनस्थ कर्मचारी को न पीटा तो यह मेरे सिर पर चढ़ बैठेगा और मुझे पीट देगा। क्या आप यह सुनना पसन्द करते कि एक मातहत ने अपने अफसर को पीटा। अब कम से कम यह बात तो है कि एक अफसर ने मातहत को पीटा है।" आखिर दोनों के खिलाफ कार्यवाही चली। दोनों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा । अपनी क्षणिक उत्तेजना के कारण दोनों बर्बाद हो गये। आत्महत्याएँ बहुधा आवेशवश ही होती हैं । घर में किसी के बुरे स्वभाव के कारण व्यक्ति क्रोधावेश में आ जाता है, आगा-पीछा कुछ नहीं देखता, बस, आत्महत्या के लिए तैयार हो जाता है, लेकिन जब ऐसा करते हुए पकड़ा जाता है तो मन शान्त होने पर अपनी गलती पर बड़ा पश्चात्ताप होता है। एक परीक्षार्थी दो बार परीक्षा में फेल हो गया था। इस पर घरवालों ने कुछ कहा-सुनी की। उसे एकदम आवेश आ गया और उसी सनक में वह घर से भाग निकला। एक सप्ताह तक घरवालों ने उसे बहुत ढूंढ़ा, बहुत परेशान हुए, तब जाकर उसका पता लगा । बम्बई में वह रिक्शा चलाता हुआ मिला । अब उसे अपने दुष्कृत्य पर आत्मग्लानि हो रही थी। पूछे जाने पर उसने कहा- "मैं आवेशग्रस्त हो गया था। दूसरी ओर कायरता और हीनता के विचारों से मेरा मानसिक सन्तु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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