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________________ २६८ आनन्द प्रवचन : भाग ६ कि जहाँ दो विरोधी हित टकराते हों, वहाँ उनमें समन्वय और सामंजस्य स्थापित करना चाहिए । जहाँ व्यक्ति या परिवार के हित के साथ समाज, जाति या राष्ट्र के हितों में संघर्ष संभव हो वहाँ आने वाले संघर्ष को दोनों में सामंजस्य एवं समन्वय स्थापित करके समाप्त कर दिया जाता है, वहाँ अतिस्वार्थी मनोवृत्ति पर अंकुश आ जाता है, और कई दफा दूसरी कोटि के व्यक्तियों की तरह स्वार्थ के साथ परमार्थ का गठजोड़ हो जाता है। ____ अब आइये, तीसरी कोटि के व्यक्तियों को समझ लें। ये दूसरों के हित का नाश करके स्वहित साधने का प्रयास करते हैं। इनकी यह प्रवृत्ति संकीर्ण स्वार्थी मनोवृत्ति की परिचायिका है । ऐसा व्यक्ति दूसरों की व्यथा नहीं समझता। वह परदुःख के प्रति उदासीन रहता है। ऐसे लोग अपना पेट भर जाने पर समझने लगते हैं कि सबका पेट भरा होगा। यही निष्ठुरता का चिन्ह है। जिसकी आत्मा दूसरे के दुःखदर्द को नहीं टटोलती, जिसका अन्तःकरण पर पीड़ा का अनुभव नहीं करता, सचमुच उसे मनुष्य-शरीर में स्थित पाषाण कहा जाता है। ऐसे स्वार्थी का हृदय पाषाण-हृदय है। अतिस्वार्थी व्यक्ति हृदयहीन हो जाता है - स्वार्थ में अन्धा होकर मनुष्य इतना हृदयहीन हो जाता है कि अपने उपकारी को छोड़ देता है, उसके साथ निष्ठुरता का व्यवहार करता है। उसके हृदय में उपकारी द्वारा किये हुए उपकार की कोई छाप अंकित नहीं रहती। बौद्ध जातक में एक कथा आती है कि एक बार बोधिसत्त्व हिमालय-प्रदेश में एक कठफोड़े पक्षी की योनि में पैदा हुए। एक बार इस कठफोड़े ने एक सिंह को वेदना से कराहते हुए देखा, जिसके गले में मांस खाते समय एक हड्डी फंस गई थी। सिंह ने कठफोड़े को निकट आए देख उससे कहा-"मेरे गले में अटकी हुई हड्डी निकाल दो।" कठफोड़े ने कहा- "हड्डी तो मैं अच्छी तरह से निकाल सकता हूँ, क्योंकि मेरी चोंच बहुत लम्बी है, मगर मुझे तुम्हारे मुंह में चोंच डालते बहुत डर लगता है, कहीं तुम मुझे चट कर गए तो !" सिंह ने बहुत ही नम्रता दिखाते हुए अभय का वचन दिया, तब उसने चोंच डालकर गले में फंसी हड्डी निकाल दी। सिंह ने उसका बहुत उपकार माना । कई दिनों तक दोनों का मिलना-जुलना चालू रहा। एक बार की बात है। कठफोड़ा बीमार पड़ गया। इधर-उधर चलने-फिरने की स्थिति में नहीं रहा, तब भोज्य सामग्री कौन और कहाँ से लाता ? फलतः वह भूखा मरने लगा । एक दिन उसे अपने सिंह मित्र की याद आई। किसी तरह सरकतासरकता वह सिंह के पास पहुँचा और निकट के एक पेड़ पर बैठ गया। उसने देखा कि सिंह भैंस का मांस खा रहा है । अतः उसने आपबीती सुनाकर सिंह से कुछ भोजन देने के लिए कहा तो पहले तो सिंह ने उसे पहचाना ही नहीं । जब कठफोड़े ने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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