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________________ सत्यशरण सदैव सुखदायी ११ अपराधी के सत्य की शरण में जाने का चमत्कार शास्त्र में बताया है कि कोई साधु मोहवश कोई पाप या अपराध कर लेता है, जिससे उसका महाव्रत या व्रत भंग हो जाता है, परन्तु दृढ़ विश्वासपूर्वक सत्य की शरण लेकर अगर वह आचार्य या गुरु की सेवा में आकर सच्ची-सच्ची आलोचना कर लेता है तो उसकी रक्षा हो जाती है । कदाचित् कोई अपराध प्रगट हो जाए तो इस प्रकार सत्यतापूर्वक आलोचन या प्रकटीकरण करने और पश्चात्ताप सहित प्रायश्चित्त ले लेने पर समाज उसे माफ कर देता है । इस प्रकार उसकी वहाँ भी और आगे भी आत्मरक्षा हो जाती है । सत्य उसकी आत्मा को पाप के बोझ से हलका और शुद्ध बना देता है। गृहस्थ भी किसी अपराध के बाद सत्यशरण स्वीकार करे तो भारी सरकारी सजा से बहुत कुछ अंशों में बच जाता है, आत्मशुद्धि भी कर लेता है । rant में महात्मा गांधी के पास करचोरी का एक केस आया । गांधीजी उसकी पैरवी कर रहे थे, परन्तु मुवक्किल का करचोरी का अपराध सिद्ध हो रहा था । सत्यनिष्ठ गांधी को पता लगा कि मुवक्किल ने वास्तव में करचोरी की है और उसे वह छिपाकर निर्दोष सिद्ध होना चाहता है, वे दूसरे ही दिन मुवक्किल के पास पहुँचे और कहने लगे -- " मैं आपके मुकदमे की पैरवी नहीं कर सकता, मुझे मामला झूठा लगता है । आपकी करचोरी प्रायः सिद्ध हो चुकी है । आपको बहुत भयंकर सजा मिलने की सम्भावना है । अतः इससे बचने का एक ही उपाय है--सत्य की शरण ! आप अपनी करचोरी का अपराध स्वीकार कर लें । मेरा विश्वास है कि इससे आपको सजा तो होगी, पर बहुत मामूली सजा से या कदाचित् सजा बिना ही काम हो जाएगा ।" घबराये हुए मुवक्किल ने गांधीजी की सलाह मानकर सत्य की शरण स्वीकार की । गांधीजी ने अदालत में अपने मुवक्किल की ओर से कहा--"मेरे मुवक्किल ने करचोरी की है, इसके लिए उसके मन में पश्चात्ताप है और वह अपनी गलती स्वीकार करता है ।" गांधीजी के इस सत्य बयान पर सब वकील आश्चर्यचकित हो गए कि यह मुवक्किल को और फँसा रहा है । परन्तु मजिस्ट्र ेट ने गांधीजी के मुवक्किल द्वारा सत्यतापूर्वक अपना अपराध स्वीकार कर लेने के कारण भारी सजा के बदले जितने रुपयों की करचोरी की थी, उससे दुगुनी अर्थराशि भर देने की सजा दी । मुवक्किल ने यह सजा स्वीकार करली और अर्थदण्ड भर देने के बाद एक बड़े कागज में करचोरी का व्योरा लिखा तथा नीचे सूचना लिखी कि भविष्य में मेरी फर्म में कोई किसी प्रकार की करचोरी न करे । उस कागज को शीशे में मढ़ाकर उन्होंने अपनी फर्म में टँगवा दिया । मतलब यह है कि महात्मा गांधी ने अपने स्वीकार कराकर उसे एक बड़े संकट से बचाया । मिला और भविष्य के लिए उसके जीवन का सुधार भी हो गया । Jain Education International मुवक्किल को सत्य की शरण सत्य के प्रभाव से दण्ड भी कम For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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