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आनन्द प्रवचन : भाग ६
सत्यशरण से निर्भयता का संचार
__ सत्यशरण स्वीकार करने पर अगर व्यक्ति किसी संकट में फंस भी जाता है तो सत्याधिष्ठित देव उसकी सहायता करते हैं, उसमें एक प्रकार की निर्भयता आ जाती है, वह बेधड़क होकर अपने अपराध को स्वीकार कर लेता है, इतना ही नहीं, सत्य के प्रभाव से वह उस अपराध से शीघ्र छुटकारा पा लेता है। शास्त्र में कहा है
__ "सच्चस्स आणाए उवढिओ मेहावी मारं तरइ।"
सत्य की आज्ञा में उपस्थित मेधावीपुरुष मृत्यु के क्षणों भी पार कर. जाता है, अथवा मृत्युभय पर भी विजय पा लेता है । वह किसी प्रकार का भय नहीं रखता । जैसा कि नीतिकार कहते हैं
"सत्ये नास्ति भयं किंचित्" -सत्य के होने पर किंचित् भी भय नहीं रहता।
जयपुर के पास घोड़ीग्राम का घाटम नामक मीना अपना परम्परागत चोरी का धंधा करता था। वह कभी-कभी एक महात्मा के पास सत्संग करने जाया करता था। एक दिन महात्मा ने घाटम से कहा-"भाई ! तू चोरी करना छोड़ दे।" घाटम ने कहा- 'चोरी ही मेरी आजीविका है । इसे छोड़ दूं तो परिवार का पालन कैसे करूंगा। और कोई आज्ञा दें।"
___ महात्मा ने कहा-अगर चोरी करना नहीं छोड़ सकता तो न सही, तुझे चार नियम बताता हूँ, उनका पालन आवश्य करना
(१) सदा सत्य बोलना, (२) संत-सेवा करना, (३) प्रत्येक खाद्य पदार्थ भगवदर्पण करके खाना, (४) भगवान की आरती देखना।।
सरलहृदय घाटम ने चारों नियम के लिए। एक बार भगवान का उत्सव था । गुरुजी बहुत दूर थे। उन्होंने घाटम को इस उत्सव में शामिल होने के लिए बुलाया। घाटम ने सोचा-समय बहत कम है, स्थान अति दूर है। अतः उसने राजा के घड़साल से एक घोड़ा चुराया और हवा हो गया। पहरेदारों ने पूछा तो उसने अपने को चोर बताया था। रास्ते में सन्ध्या हो जाने से घाटम एक मन्दिर में ठहर गया । बाहर घोड़ा बाँध दिया और आरती करने लगा। उधर जब घोड़े के चुराने का पता लगा तो राजा के घुड़सवार पदचिन्ह देखते हुए वहाँ पहुँच गये । पर उन्हें वह घोड़ा भ्रम से या भगवान की माया से श्वेत रंग का दिखाई देता था। जब घाटम घोड़े पर चढ़ने लगा तो उन्हें आश्चर्यचकित देखकर कहा-"घबराओ मत, मैं वही चोर हूँ, घोड़ा भी बही है । मुझे गुरुजी के यहाँ महोत्सव में पहुँचना है। तुम चाहो
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