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________________ १० आनन्द प्रवचन : भाग ६ मानित या निन्दित होंगे, परन्तु होता इससे उलटा है । जो लोग सत्य की शरण में जाते हैं, वे कदाचित् किसी अपराध या दोष के कारण किसी कष्ट में पड़े हों तो भी सत्य के प्रभाव से उनका वह कष्ट दूर हो जाता है, उनके सिर से बहुत बड़ी चिन्ता का भार हलका हो जाता है, उनका सम्मान भी बढ़ता है, लोगों में उनका विश्वास बैठ जाता है, वे विश्वसनीय व्यक्ति बन जाते हैं। पाश्चात्य विद्वान 'ड्राइडेन (Dryden) के शब्दों में सत्य की महत्ता देखिए-"Truth is the foundation of all knowledge and the cement of all societies. "सत्य तमाम ज्ञानों की आधारशिला है और तमाम समाजों के साथ सम्बन्धों को सुदृढ़ करने वाला सिमेंट है।" अहमदाबाद के एक प्रतिष्ठित भाई ने अपनी पत्नी से किसी बात पर मतभेद होने के कारण आवेश में आकर पत्नी के सिर पर ईट दे मारी, जिससे वह मूच्छित होकर गिर पड़ी, कुछ ही देर में उसने वहीं दम तोड़ दिया। वह भाई तुरन्त पश्चात्तापयुक्त होकर पुलिस स्टेशन गए और अपने अपराध की सत्य घटना कह सुनाई। पुलिस ने उन पर केस चलाया । उस भाई के वकील ने कहा--"इस दुर्घटना में कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है। अतः यदि आप यह बयान दे देंगे कि मेरे हाथ से यह अपराध हुआ ही नहीं है, तो आप निर्दोष छूट जाएँगे।" उस सत्यनिष्ठ भाई ने कहा-- 'मैं असत्य बोलकर अपने को निर्दोष सिद्ध नहीं करना चाहता । सत्य बोलते हुए आप मुझे कानून से बचा सकते हों तो बचाइए। अन्यथा, अपने किये हुए अपराध के बदले में मुझे जो सजा होगी, उसे मैं भोगने को तैयार हूँ।" कोर्ट में जब उस पर मुकदमा चला तो मजिस्ट्रेट के सामने उसने सत्य बयान दिये । इससे मजिस्ट्रेट बहुत प्रसन्न हुए। मजिस्ट्रेट ने दुःखित हृदय से कानून की दृष्टि से सजा तो सुना दी, परन्तु अपनी राय देते हुए उसने कहा--"न्यायाधीश पद पर काम करते हुए मैंने ऐसा सत्यवादी मनुष्य पहली ही बार देखा है। इसलिए मैं सरकार से प्रार्थना करता हूँ कि जब भी कोई खुशी का अवसर आए तो इस सत्यवादी भाई को दण्डमुक्त कर दिया जाए।" ऐसा ही हुआ। कुछ समय बाद ही सप्तम एडवर्ड के राज्याभिषेक की खुशी में इस भाई को दण्डमुक्त कर दिया गया। यह केस जब पाँच हजार मील दूर बैठे यूरोप निवासियों ने सुना तो वे इस भाई की सत्यप्रियता पर बहुत प्रसन्न हुए । नतीजा यह हुआ कि वहाँ की कई कम्पनियों ने बिना मांगे ही इस भाई को अपनी एजेंसियाँ दे दी, जिससे उसका व्यवसाय बड़े जोरों से चल निकला और कुछ ही वर्षों में उसकी गिनती धनकुबेरों में होने लगी। बन्धुओ ! यह है, सत्यशरण का चमत्कार ! उस व्यापारी ने सत्य की शरण ली और सत्य पर डटा रहा, जिसके कारण उसका कष्ट भी दूर हो गया, सम्मान और धन भी बढ़ा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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