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________________ २५० आनन्द प्रवचन : भाग ६ खाली जा रही है । इस पथिक को कैसे लूटा जाए ?' अपना जाना अशक्य जानकर उस बाबा ने दूसरी पहाड़ी वाले बाबा को संकेत करने के लिए राम राम का जप छोड़कर 'राधा - कृष्ण' का जोर-जोर से रटन करना शुरू किया । ठाकुर पर इसका बहुत प्रभाव पड़ा कि "बाबाजी तो समदर्शी हैं, वे राम का ही नहीं, कृष्ण का भी जप करते हैं ।” परन्तु बाबाजी का आशय दूसरी पहाड़ी वाले बाबा जिसका नाम कृष्ण (किशन ) था, को इस आशय का संकेत करना था कि “रा = राह में, धा= = दौड़ यानी अरे कृष्ण ! मैं तो यहाँ रुका हुआ हूँ, राह में जो आदमी जा रहा है, उसे लूटने के लिए तू जल्दी दौड़कर पहुँच ।" अपने साथी का संकेत मिलते ही किशन बाबा पहाड़ी की ओट में जा पहुँचा । उसने वहाँ से गुजरते हुए आदमी को पकड़कर एक पेड़ से कसकर बाँध दिया । फिर पहाड़ी पर लौटकर जोर-जोर से बोलने लगा -' - " हर हाजरा हजूर, हर हाजरा हजुर !” किशन बाबा का यह संकेत था कि "यह आदमी हाजिर है, अब क्या करू ँ ?” परन्तु ठाकुर साहब ने जब यह सुना तो सोचा - " अरे ! एक बाबाजी वहाँ भी भजन कर रहे हैं । " अब पहले बाबा ने 'राधा-कृष्ण' का जाप छोड़कर 'दामोदर कुंज बिहारी' का जाप चालू कर दिया । इन शब्दों से बाबाजी का किशन बाबा को संकेत था कि "दाम तो छीन लो और कूंजे की तरह उसका सिर तोड़ दो - यानी काटकर कहीं दो और बिहार कर (भाग) जाओ ।" ठाकुर साहब पर बाबाजी के द्वारा अनेक नामों से प्रभु को पुकारने का बहुत प्रभाव पड़ा । उधर किशन बाबा फिर नीचे आया, राहगीर की जेबें टटोली तो उसके पास कुछ नहीं निकला, क्योंकि वह कोई धोबी था, उसने साहूकारों के स्वच्छ कपड़े जरूर पहन रखे थे, मगर पास में एक भी पैसा नहीं था । अतः किशन बाबा फिर ऊपर जाकर पुकारने लगा — “निरंजन निराकार, निरंजन निराकार ।" इस संकेत का अर्थ था — वह तो निरंजन निराकार है, यानी उसके पास तो कुछ भी नगदनारायण नहीं है । ठाकुर साहब ने सोचा - "वाह उधर निरंजन निराकार का भी जाप चल रहा है ।” तब यह बाबा 'दामोदर कुंज बिहारी' का जाप छोड़कर कहने लगा — 'रणछोड़ राय, रणछोड़राय ।" इससे किशन बाबा के लिए संकेत था - " उसे अरण्य (जंगल) में छोड़ दो ।” परन्तु ठाकुर साहब ने सोचा - " बाबाजी तो 'रणछोड़राय' का भी जाप करते हैं ।” ऐसे ही साधुओं के लिए महात्मा सत्तारशाह ने कहा है क्यूँ साधु को भेख लजावे, साधु-घर तो न्यारो है । जोग लियो, जुगती व जाणी, झूठो ढोंग पसारो है ॥ हाँ, तो मैं कह रहा था कि जो साधु भजन या नामजप में प्रवृत्ति - निवृत्ति का विवेक छोड़कर दूसरों को ठगने के लिए उन दो धूर्त बाबाओं की तरह भजन या नाम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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