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कृतघ्न नर को मित्र छोड़ते
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क्षेत्र कृतघ्नता के हो सकते हैं, क्योंकि ये दोनों परस्पर विरोधीभाव हैं। इसलिए जिन क्षेत्रों में कृतज्ञता प्रकट करनी है, उन्हीं क्षेत्रों में कृतघ्नता से बचना है। यों तो मनुष्य को जन्म से लेकर मृत्यु तक जितने और जिन-जिन प्राणियों से वास्ता पड़ता है, जिन-जिन प्राणियों से सहयोग लेना पड़ता है, या जिन-जिनके उपकार से से वह उपकृत होता है, उन सबके प्रति कृतज्ञ होना, कृतज्ञता प्रगट करना अत्यावश्यक है।
मैंने एक दिन कहा था कि धर्माचरण करने वाले साधक के लिए ५ आलम्बन स्थान होते हैं___षटकाय, गण (संघ), राजा (शासन), गृहपति और शरीर ।'
इससे यह स्पष्ट है कि प्रत्येक धर्मिष्ठ मानव को प्राणिमात्र से वास्ता पड़ता है और जन्म से लेकर मृत्यु तक अगणित उपकारों से उपकृत होता रहता है । इसलिए संसार के समस्त प्राणी कृतज्ञता के पात्र हैं, न जाने कब किस प्राणी से और कब किस व्यक्ति से मानव को सहायता लेनी पड़ जाए । बहुत-सी बार एक तुच्छ समझा जाने वाला प्राणी भी मनुष्य पर महान् उपकार कर बैठता है, उसके उपकार का बदला चुकाना आवश्यक है। बटूण्ड रसैल ने एक पुस्तक लिखी है-'द वर्ल्ड, एज आई सी इट' उसमें उसने बताया है कि "संसार के प्राणियों पर जब मैं दृष्टिपात करता हूँ, तब ऐसा मालूम होता है, मेरे इस शरीर और जीवन के निर्माण में अगणित प्राणियों का उपकार है।" जैनशास्त्र भी यही बात कहते हैं, यहाँ तक कि वे इस जड़ शरीर (जिसमें इन्द्रियाँ, शरीर के अवयव एवं मन आदि भी आजाते हैं) का भी उपकार बताते हैं, जिसके सहारे के बिना धर्माचरण नहीं किया जा सकता। इन उपकारों का बदला चुकाना और इनके प्रति कृतघ्नता से बचना अत्यावश्यक है। इसी प्रकार ग्राम, नगर, राष्ट्र, संघ (धर्मसंघ), शासन, परिवार आदि का भी बहुत उपकार है, जिनके कारण मनुष्य की सुरक्षा, जीविका, जीवन-निर्माण और जीवन का विकास हुआ है।
वर्तमानकाल का मानव इनके उपकारों को भूलकर अपने अभिमान में छका रहता है । मानव के पालन-पोषण में माता-पिता तथा परिवार का, सुरक्षा में शासन का, आध्यात्मिक विकास में धर्मसंघ, धर्मगुरु आदि का तथा ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल आदि एवं जीविका के क्षेत्र में प्रगति के लिए ग्राम, नगर या राष्ट्र का उपकार है, उसका भी उसे भान रहना चाहिए, और इनके प्रति कृतघ्नता से बचना चाहिए । इन उपकारियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए सदा उद्यत रहना चाहिए।
कृतज्ञता भारतवासियों की विभूति है । वेदों में बड़ी-बड़ी लोकोपकारी शक्तियों
१ "धम्मं चरमाणस्स पंच निस्साठाणा पण्णत्ता, तं. महा-छक्काए, गणे, राया, गिहवई, सरीरं।"
-स्थानांगसूत्र, स्थान ५ सू०, ४४७
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