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आनन्द प्रवचन : भाग ६
नीतिक लोगों के चक्कर में आकर मजदूर लोग भी अपने कारखाने या मिल के प्रति नमकहराम, गैरवफादार एवं कृतघ्न होकर उसका कार्य ठप्प करा देते हैं, जिसका भयंकर परिणाम भी उन मजदूरों को भोगना पड़ता है। परन्तु जो कृतज्ञ मजदूर होते हैं, वे ऐसा नहीं करते, बल्कि किसी कारणवश मिल बंद होने जारही हो तो वे स्वयं अपना आत्मभोग देकर उसे बन्द होने से रोक देते हैं। .
सन् १९३० की मंदी में इंग्लैण्ड की एक पुरानी मिल घाटे में चली गई। स्टॉक का मूल्य कम रह गया और बिक्री घट गई । स्थिति यहाँ तक पहुँच गई कि मिल को बन्द करने के सिवाय कोई चारा न रहा । वहां के मालिक-मजदूरों में मुद्दतों से स्नेह सम्बन्ध चला आ रहा था। वस्तुस्थिति की सूचना देने के लिए एक दिन मालिक ने मजदूरों को बुलाकर प्रेम से कहा-"बन्धुओ ! घाटा अब इतना अधिक बढ़ गया है कि मिल अब दिवालिया घोषित होने जारही है। हमारी और आपकी लम्बी मित्रता का अन्त होने में अब एक सप्ताह से अधिक समय नहीं रह गया है।" मजदूर भारी मन से यह सुनकर यह कहते हुए चले गए—"हमने मिल का नमक खाया है, हम अपना सर्वस्व देकर भी मिल को बन्द होने से बचाएँगे।" दूसरे दिन जब मजदूर आए तो अपने-अपने काम पर जाने की अपेक्षा वे मालिक के दफ्तर पर लाइन से खड़े होगए । उनमें से प्रत्येक एक-एक करके दफ्तर में घुसा और अपनीअपनी पासबुक के साथ चुकती पावती की रसीद मालिक की मेज पर रखता चला गया । प्रत्येक ने कहा- "हमारे पास जो भी जमा पूंजी है, उसे आप निकाल लें और घाटे की पूर्ति में लगा दें; और मिल को चालू रखने का अयत्न करें। यदि मिल और आप डूबने जारहे हैं तो हम कम से कम अपनी जमापूंजी तो साथ में डुबा ही सकते हैं।" उन हजारों पासबुकों को लेकर मालिक बैंक में गया। यद्यपि बैंक आगे से नया उधार देने से स्पष्ट इन्कार कर चुका था; तथापि इतनी सारी पासबुकों को देखकर बैंक मैनेजर अचकचाए और कुछ सोचने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि 'जिस मिल के कर्मचारियों और मालिक में इनकी घनिष्ठ आत्मीयता और परस्पर कृतज्ञता का भाव है, उसका भविष्य उज्ज्वल है। ये लोग बुरे दिनों में भी इसी प्रकार मिलजुलकर निपट लेंगे।' अतः उन्होंने मिल को फिर से उधार देने का फैसला कर लिया। फलतः मिल चालू रही और संकट के दिन मजदूरों की कृतज्ञता के कारण टल गए।
इसलिए जो बाजी कृतघ्नता से बिगड़ सकती थी, वह मजदूरों की कृतज्ञता के कारण एक दफे सुधर गई। कहाँ कृतज्ञता दिखाई जाए ? कहां कृतघ्नता से बचा जाए?
अब प्रश्न होता है कि कृतज्ञता कहां-कहां दिखलाई जाए और कहाँ-कहाँ कृतघ्नता न दिखाई जाए ? यानी कृतज्ञता के कौन-कौन से क्षेत्र हैं और कृतघ्नता से बचने के कौन-कौन से ? सच बात यह है कि जितने क्षेत्र कृतज्ञता के हैं, उतने ही
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