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________________ १७० आनन्द प्रवचन : भाग ६ अहंकारी गुरु बोले- "अच्छा, आज रात को तेरे खेत में वर्षा होगी, दूसरों के खेतों के लिए कुछ नहीं कहता।" किसान यह सुनकर प्रसन्नता से घर लौटा । रात को जब चारों ओर सन्नाटा छा गया, तब गुरुजी अपनी शिष्य मण्डली को साथ लेकर उस किसान के खेत पर पहुँचे और रातभर निकटवर्ती कुएँ से पानी निकालकर खेत को सींचा । ब्राह्म-मुहूर्त होते-होते वे अपने आश्रम पर वापिस लौट आए। प्रातःकाल होते ही किसान गुरु के वचन का प्रभाव देखने के लिए अपने खेत पर पहुँचा । खेत को गीला देख किसान ने सोचा-गुरुजी की बात तो सोलहों आने सत्य सिद्ध हुई । गुरु की इस वचनशक्ति की प्रशंसा उसने सभी पड़ोसी किसानों से कर दी। फिर क्या था, पड़ोसी किसान भी गुरु के पास पहुँचे और उनकी वचन-सिद्धि प्राप्त होने की प्रशंसा करते हुए अपने-अपने खेतों में वर्षा के लिए पूछताछ करने लगे। गुरुजी ने उन्हें भी वैसा ही उत्तर देकर विदा किया। शिष्यगण पहले दिन गुरु की आज्ञा पालन करने के कारण बेहद थके हुए थे, नींद भी पूरी न ले सके थे। जब उन्होंने किसानों को दिये हुए गुरु के थोथे आश्वासन के विषय में सुना तो आने वाली इस विपत्ति से बचने के लिए आपस में सलाह की - "कल हमें रातभर परेशान होना पड़ा और आज भी गुरुजी परेशान करेंगे। इससे बेहतर है कि हम सब मिलकर सदा के लिए पतंग काट दें। अन्यथा, यह चक्कर रोज-रोज चलता रहेगा।" इस प्रकार एकमत होकर वे सब गुरुजी के पास आए और बोले-"हमें निकट के गाँव में भ्रमण के लिए जाने की आज्ञा दें।" परन्तु गुरुजी तैयार न हुए। उन्होंने शिष्यों को रात्रि के कार्यक्रम की सूचना दी। शिष्यों ने कहा- “गुरुजी ! हम नहीं जानते । जो कहेगा, सो करेगा।" यों कहकर सभी शिष्य वहाँ से चले गए। सुबह किसानों ने जब खेत को सूखा पाया तो वे इस असत्यवादी गुरु की भर्त्सना करने लगे। इस प्रकार आत्मप्रशंसालिप्सु गुरु को असत्यवादी सिद्ध होने के कारण नीचा देखना पड़ा। वास्तव में, जो इस प्रकार झूठे आश्वासन देकर अपने आपको सत्यवादी या वचनसिद्ध प्रमाणित करना चाहता है, उसकी कलई खुले बिना नहीं रहती। शेखसादी ने लिखा है "झूठ बोलना वक्र तलवार से कटे हुए घाव के समान है। यद्यपि वह घाव भर जाता है किन्तु उसका दाग रह जाता है।" सत्यनिष्ठ साधक आत्मप्रशंसा का लोभी बनकर असत्य नहीं बोलती। वह अपनी योग्यता जैसी और जितनी है, उतनी ही कहेगा। प्रसिद्ध निबन्धकार बेकन (Bacon) के मतानुसार सत्यनिष्ठ में सत्य की त्रिपुटी अवश्य होगी, उसके बिना वह एक कदम भी न चलेगा "There are three parts in truth; first, the inquiry,which is the Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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