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________________ १६६ आनन्द प्रवचन : भाग ६ केनिंग रहते थे। सर्दी का मौसम था। एक सत्याचरणी सिपाही उस कड़ाके की सर्दी में वॉयसराय की कोठी पर गश्त लगाता हुआ पहरा दे रहा था। उसके चलने से बूट की खटखट की आवाज होती थी। अन्दर सोई मेम साहब की नींद उड़ गई। उसे बार-बार की इस खटखट से नींद नहीं आ रही थी। मेम ने एक नौकर को बुलाकर कहा- "उस सिपाही से कह दो, एक जगह खड़ा रहे, गश्त लगाना बन्द करदे ।" नौकर ने आकर जब सिपाही से मेम साहब की ओर से घूमने की मनाही का आदेश सुनाया, तो उसने ऐसा करने में लाचारी बताते हुए कहा-"अपने अफसर का हुक्म ऐसा ही है।" लौटकर नौकर मेम साहब के पास आया सारी बात सुनकर मेम को भी गुस्सा आ गया। वह स्वयं उठकर बाहर आई और सिपाही को गश्त लगाने के लिए मना करने लगी। सत्यप्रिय सिपाही ने कहा - "मुझे घूमकर पहरा देने का ही आदेश है, इसलिए एक जगह खड़ा नहीं रह सकता।" इस पर क्रुद्ध होकर मेम ने लार्ड को जगाया और सारी बात कही। लार्ड ने फिर नौकर को सिपाही के पास भेजा तो उसने वही पहले वाला जबाब दिया। अन्त में लार्ड ने स्वयं आकर सिपाही से पूछा--"तुम्हारा नाम क्या है ?" 'मेरा नाम छोगसिंह है, साहब !' "कहाँ का है ?" "राजस्थान का हूँ।" "क्या तुम राजपूत हो ?" "जी हाँ" "नम्बर कितना है ?" 'एक सौ पिचहत्तर !' "अच्छा तुम एक जगह ही खड़े रहो, तुम्हारे घूमने से मेम साहब की नींद उड़ जाती है।" “साहब ! मैं खड़ा नहीं रह सकता। मुझे अपने आफिसर का यही आदेश है।"-अदब से उसने कहा। . "मैं तुमसे कहता हूँ । जानते हो, मैं कौन हूँ ? लार्ड, हिन्दुस्तान का लार्ड।" वायसराय ने कहा। "आप सच फरमाते हैं, लेकिन यह बात आप मेरे आफिसर से कहें। हमें तो उनका आदेश मानना पड़ता है। वे जैसा आदेश देंगे, वैसा मैं कर लूंगा।"-छोगसिंह ने निर्भीकता से कहा। "क्या मेरा कहना भी नहीं मानोगे ?" वायसराय ने गुस्से में कहा । "मैं मजबूर हूँ, साहब !" सिपाही ने कहा। वॉयसराय आगबबूला होकर अन्दर चले गये। उन्होंने मेम से दूसरे कमरे में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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