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________________ १६२ आनन्द प्रवचन : भाग १ रखा, तब इसे निराश करना मेरे लिए अनुचित था। यह अपना वायदा पूरा करेगा, इसका मुझे पूरा भरोसा था ।" इस घटना का फरियादियों पर इतना प्रभाव पड़ा कि उन्होंने युवक पर दया दिखाते हुए कहा- "उमर साहब ! हम इसकी हत्या माफ करते हैं। खुदा जाने, ऐसे सत्यवादी युवक से यह गुनाह कैसे हो गया ?" सबका समर्थन मिला। हजरत उमर ने उस गुनाहगार युवक को उसकी सत्यवादिता से प्रभावित होकर दण्डमुक्त कर दिया। वह सबका आभार मानता हुआ चल पड़ा। बन्धुओ ! जब उस अपराधी में सबको सत्य की झलक दिखाई दी तो उन्होंने उसके घोर अपराध को माफ कर दिया । सचमुच, सत्यवादी अपने सत्य-आचरण से पहचाना जाता है। पाश्चात्य विचारक राबर्टसन (Robertson) ने ठीक ही कहा "Truth lies in character, for truth is a thing not of words, but of life and being." “सत्य आचरण में निहित होता है, क्योंकि सत्य ऐसी चीज है, जो शब्दों की नहीं, किन्तु जीवन जीने की और अस्तित्व की वस्तु है।" जो लोग केवल अपनी प्रशंसा, प्रतिष्ठा या सम्मान के लिए सत्य बोलते हैं, उनका सत्य हृदय की गहराई से तथा मन-वचन-काया की एकता से नहीं होता और एक न एक दिन उस अवसरवादी सत्य की कलई खुल ही जाती है। स्थानांग सूत्र (स्था० ४) में श्रमण भगवान महावीर ने मानव में निहित सत्य को पहचानने के लिए चार बातें बताई हैं "चउविहे सच्चे पण्णते, तं जहा"काउज्जुयया, भासुज्जुयया, भावुज्जुयया, अविसंवायणाजोगे।" सत्य चार प्रकार से जीवन में प्रतिष्ठित होता है-काया की सरलता से, भाषा की सरलता से, भावों की सरलता से और अविसंवादिता (परस्पर विरुद्ध वचन या विसंगति न होने) से। ___ सत्यनिष्ठ व्यक्ति शरीर से गलत चेष्टा नहीं करेगा। वह आँखों के इशारे से, हार-पैर और मुंह की चेष्टा से तथा खाँसकर अथवा किसी चीज को फेंककर कोई असत्य कार्य करने चेष्टा न करेगा, न ही प्रेरणा देगा। वह मन में दूसरे के प्रति गलत विचार या दुष्टभाव नहीं रखेगा, न बाहर से वाणी एवं व्यवहार से अच्छाई प्रगट करके पीछे से गलत काम करेगा। उसके जो मन में होगा, वही वह वचन से कहेगा और वही व्यवहार या कार्य काया से करेगा। . ___ सत्यनिष्ठ व्यक्ति सत्य का सम्बन्ध केवल शब्दों से नहीं मानता अपितु आन्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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