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________________ कद्ध कुशील पाता है अकीति १०६ यदि मनुष्य अपने चरित्र (शील) को उज्ज्वल नहीं रख सकता, यदि वह लोगों के साथ नम्र और प्रेममय व्यवहार नहीं कर सकता तो भले ही वह धनवान हो, अथवा विद्यावान हो, लोग उसके धन से घृणा करेंगे, तथा उसके ज्ञान में अविश्वास करेंगे। भला ऐसे चरित्रहीन एवं उद्धत व्यक्ति की कीर्ति कैसे सुरक्षित रह सकेगी? चरित्रहीन एवं कर्कश व्यक्ति का समाज में मूल्य एवं प्रभाव नष्ट हो जाता है। किसी भी तरह का चारित्रिक एवं व्यावहारिक दोष मनुष्य को असफलता एवं पतन की ओर प्रेरित करता है, फिर जनता की जबान पर उसका यशोगान कैसे होगा ? महान पण्डित, विज्ञानी, बलवान एवं सत्ताधीश रावण अपने क्रोध, अहंकार एवं परस्त्री-आसक्ति सम्बन्धी चारित्रिक पतन के कारण अपनी उच्च कीर्ति को नष्टभ्रष्ट कर बैठा । उस युग के सारे समाज, यहाँ तक कि पशु-पक्षियों तक ने उसके इन अकीर्तिकर दुर्गुणों का विरोध किया था। इस प्रकार चरित्र (शील) और सौम्य नम्र व्यवहार की साधारण-सी भूलें मनुष्य को अकीर्ति की राह पर ले जाती हैं । और फिर चरित्रहीन (कुशील) एवं सौम्य नम्र व्यवहारहीन मनुष्य का कोई भी कथन' या कार्य समाज या राष्ट्र में विश्वसनीय नहीं होता। चरित्रहीन के पास ईमान या सिद्धान्त नाम की कोई वस्तु नहीं होती । उसका ईमान अधिकतर पैसा और सिद्धान्त केवल स्वार्थ होता है। चरित्रहीन ईमानदारी दिखलाता है, किसी को धोखा देने के लिए, और सिद्धान्त की दुहाई देता है, केवल स्वार्थ के लिए। ऐसी स्थिति में चरित्रहीन या सद्व्यवहारहीन व्यक्ति शंका, सन्देह, अविश्वास, लांछना या कलंक से युक्त जीवन जीते हैं वे स्वयं इस जीवन को नीरस, शुष्क एवं मनहूस महसूस करते हैं । अत: उनसे कीर्तिदेवी का रूठना स्वाभाविक है। वे कीर्ति के लिए तरह-तरह के हथकंडे जरूर करते हैं, पर पाते हैं, अपकीर्ति ही। कीर्ति का द्वार तो वे पहले से ही बंद कर देते हैं। इसीलिए महर्षि गौतम ने इस जीवनसूत्र में बताया 'कुद्ध कुसोलं भयए अकित्ती' अतः आप भी अकीर्तिमय जीवन से बचकर कीर्तिमय जीवन व्यतीत करें। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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