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________________ सौम्य और विनीत की बुद्धि स्थिर : २ ८१ पर मल्लाह को बहुत गुस्सा आया। वह आवेश को न रोक सका और भलीबुरी गालियाँ बकता हुआ मालवीयजी के निवासस्थान पर पहुँच गया। उस समय मालवीयजी के निवासस्थान पर कोई आवश्यक मीटिंग चल रही थी । विश्वविद्यालय के सभी वरिष्ठ अधिकारी तथा काशी के प्रायः सभी गण्य-मान्य व्यक्ति वहाँ उपस्थित थे। मल्लाह जब छात्रों को ही नहीं, अपितु मालवीयजी को भी गालियाँ देता हुआ, जहाँ बैठक चल रही थी, वहाँ पहुँच गया तो उसका बड़बड़ाना सुनकर सब लोगों का ध्यान उधर खिंच गया। बैठक में चलती हुई बातों का क्रम भंग हो गया। उस मल्लाह का चेहरा स्पष्ट बतला रहा था कि वह किसी कारणवश बेतरह क्रुद्ध और दुःखित है । मालवीयजी ने उसे ध्यानपूर्वक देखा और उसके आन्तरिक कष्ट को समझा। वे अपने स्थान से सहजभाव से उठे और विनम्रतापूर्वक बोले-"भाई ! लगता है, जाने-अनजाने में हमसे कोई गलती हो गई है । कृपया अपनी तकलीफ बतलाएँ । जब तक अपने कष्ट को नहीं बतलाएँगे, तब तक हम उसे कैसे समझ सकेंगे?" मल्लाह को यह आशा न थी कि उसकी व्यथा इतनी सहानुभूतिपूर्वक सुनने को कोई तैयार हो जाएगा। उसका क्रोध शान्त हो गया। अपने ही अभद्र व्यवहार पर वह मन ही मन लज्जित हुआ और पश्चात्ताप करने लगा। उसने सारी घटना बताई और अपनी अशिष्टता के लिए क्षमा मांगने लगा। मालवीयजी ने कहा-"कोई बात नहीं, लड़कों से जो आपका नुकसान हुआ है, उसे पूरा कराया जाएगा। पर इतना आपको भी भविष्य में ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी प्रिय-अप्रिय घटना पर इतनी जल्दी इतनी अधिक मात्रा में क्रुद्ध नहीं होना चाहिए । पहली गलती तो विद्यार्थियों ने की और दूसरी आप कर रहे हैं। गलती का प्रतिकार गलती से नहीं किया जाता । आप सन्तोषपूर्वक अपने घर जाएँ। आपकी नाव की मरम्मत हो जाएगी।" मल्लाह अपने घर चला गया । उपस्थित सभी लोग मालवीयजी की शिष्टता, विनम्रता, सहनशीलता और स्थिरबुद्धि को देखकर आश्चर्यचकित रह गये । उन्होंने लोगों से कहा- "भाई ! नासमझ लोगों से निपट लेने का इससे सुन्दर और कोई तरीका नहीं । यदि हम भी अपनी संतुलित बुद्धि खोकर वैसी ही गलती करें और मामूली-सी बात पर उलझ जाएँ तो फिर हममें और उनमें अन्तर ही क्या रह जाएगा ?" सभी लोगों ने घटना की वास्तविकता और मालवीयजी द्वारा स्थिरबुद्धि से किये गये समाधान से बहुत बड़ी प्रेरणा ली। बाद में मालवीयजी के आदेशानुसार उन लड़कों के दण्डस्वरूप उस नाव की पुनः मरम्मत करवा दी गई। यह है, सौम्यता के कारण प्राप्त होने वाला स्थिरबुद्धि का उदाहरण । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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