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________________ ८० आनन्द प्रवचन : भाग ६ में गिरकर मरने से तो ये गहने किसी के काम नहीं आएँगे।" सेठानी ने आवेश में आकर केवल हाथों की सोने की चूड़ियाँ और नाक की सोने की नथ रखकर बाकी के गहने ढोली को दे दिये । ढोली ने लोभाविष्ट होकर कहा-"ये दो गहने भी दे दीजिए न, ये आपके क्या काम आएँगे, मरने के बाद ?" सेठानी बोली- "मेरे पति जीवित हैं, तब तक मैं सौभाग्यचिन्ह एवं इन दो गहनों को नहीं दे सकती।" __ लोभाविष्ट ढोली ने क्रोधी सेठानी से कहा- "आपको मरना ही है तो मैं कुए में पड़ने की अपेक्षा एक सरल उपाय बताता हूँ।" सेठानी बोली- "वह कौनसा है ?" ढोली ने कहा-“देखिये, नीचे मेरा यह ढोल रखकर पेड़ की डाल से बंधी हुई रस्सी को गले में कस कर बाँध लीजिए, फिर पैर से ढोल को ठेलकर लटक जाइए । एक मिनट में प्राण निकल जाएँगे।" सेठानी ने कहा- "तू जग पहले मुझे बता तो सही।" लालची ढोली ने सोचा-यदि मेरे बताने से यह गले में फांसी लगाकर मर जाएगी, तो ये दोनों गहने भी इसके मरने बाद मैं ले सकूँगा। अतः उसने नीचे ढोल रखा। फिर उस पर पैर रखकर अपने गले में रस्सा लगाया। दुर्भाग्य से रस्सा गले में डालते ही वह ढोल खिसक गया। गले में फाँसी लगने से वह आ-आ करने लगा, थोड़ी ही देर में उसकी जीभ बाहर निकल आई और उसके प्राण पखेरू उड़ गए। ढोली की अकस्मात मौत का यह नजारा देखकर सेठानी घबराई उसके मुंह से सहसा उदगार निकले- "अरे बाप रे ! यह मृत्यु तो बड़ी भयंकर है, यह तो मुझ से नहीं हो सकेगा।" अतः सेठानी ने चुपचाप ढोली को दिये हुए गहने लेकर पहन लिये और वहाँ से घर की ओर चल पड़ी। अब उसके क्रोध का नशा उतर गया था । आत्महत्या करने की ललक भी खत्म हो गई। चुपचाप शर्मिन्दा होती हुई-सी घर में घुसी और घर के काम में लग गई । शाम को उसने अपने पति से क्षमा मांगी और वचनबद्ध हो गई कि अब भविष्य में कभी क्रोध न करूंगी। बन्धुओ ! क्रोध के आवेश का परिणाम कितना भयंकर है । क्रोधावेश में सद्बुद्धि तो कोसों दूर चली जाती है। क्रोध, द्वेष, रोष और वैर-विरोध के प्रसंग पर जो सौम्य, शान्त, गम्भीर और स्थिर रहता है, उसी की बुद्धि स्थिर रहती है, वही शान्ति से विकट समस्या को सुलझा सकता है। महामना पं० मदनमोहन मालवीय उन दिनों वाराणसी हिन्दू विश्वविद्यालय में रहते थे । विश्वविद्यालय के कुछ छात्र एक दिन नौकाविहार कर रहे थे। उनकी कुछ असावधानी के कारण नौका को काफी क्षति पहुँच गई । अब वह इस स्थिति में न रही कि उससे काम लिया जा सके । बेचारा मल्लाह उसी के सहारे जीविकोपार्जन करके अपने ६ सदस्यों के परिवार का पेट पालता था। छात्रों की इस उच्छृखलता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004012
Book TitleAnand Pravachan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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