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________________ आनन्द प्रवचन : भाग ८ के लिए गजसुकुमार मुनि जैसे लोगों ने हंसते-हंसते मृत्यु का आलिंगन किया है; देशभक्ति के लिए हंसते-गाते फांसी के तख्ते पर झूले हैं, गोलियों से अपने सीने छिदवाए हैं तेल के खौलते कड़ाहों में कूदे हैं, क्रूस पर लटके हैं, जहर के प्याले पीए हैं, अपने बच्चों को अपनी आँखों के सामने दीवारों में चुने जाते देखा है और भी न जाने आदर्शों के लिए कितनी - कितनी यातनाएँ धैर्य और साहस के साथ सहर्ष सही हैं; फिर यदि छोटे-मोटे संकट, जो कि प्राण-संकट जैसे खतरनाक भी नहीं हैं, उनमें भी घब राहट होती है, मानसिक सन्तुलन बिगड़ता है तो इसे मानसिक दुर्बलता ही कहा जायेगा । ७४ व्यावहारिक जीवन में सर्वथा भले आदमियों का ही संग मिलना और सदा अनुकूलताएँ ही सामने आना सम्भव नहीं होता । झगड़ालू, कलहकारी, विक्षुब्ध, दुष्ट प्रकृति के लोगों से बचते रहने का कितना भी प्रयत्न किया जाये, फिर भी कई अधिकार प्राप्त या प्रतिष्ठित लोग होते हैं, जिनसे रोजाना पाला पड़ता है । उनके दुर्वचनों या अशोभन व्यवहारों के प्रति असहिष्णु हो जाने पर तो निरन्तर शान्ति भंग होती रहती है । अशान्त एवं उद्विग्न मनःस्थिति में कार्य भलीभांति सम्पन्न नहीं हो पाते । शान्त और सन्तुलित मनःस्थिति में ही व्यक्ति भलीभाँति सोचने-समझने और कार्य करने की स्थिति में होता है । ऐसी मनःस्थिति बनाए रखने के लिए सहिष्णुता नितांत आवश्यक होती है । दुःखों, आपत्तियों या प्रतिकूलताओं को सर्वथा हटाया या घटाया नहीं जा सकता, किन्तु समझदारी और तितिक्षा - सहिष्णुता क्षान्ति आदि की प्रक्रिया के द्वारा भूमि इस योग्य बनायी जा सकती है, जिससे दुःखों, विपत्तियों, विपरीत परिस्थितियों या प्रतिकूलताओं के आने पर भी मन पर उनका प्रभाव न पड़े और व्यक्ति हंसते-खेलते उन विपत्तियों या दुःखों आदि को सह सके, सामना कर सके। इसी का नाम कष्ट-सहिष्णुता, क्षान्ति, परिषह-सहन या तितिक्षा है । असहिष्णु व्यक्ति को दुःख की बात सुनते ही घबराहट होती है, भय लगता है, कष्ट होता है, वैसा अप्रिय अवसर सामने आते ही मानसिक सन्तुलन बिगड़ने लगता है, विचार शक्ति भी प्रायः कुण्ठित हो जाती है, परन्तु दुःखों आदि से डरने के बजाय उन्हें हम अपना सहचर बना लें, उनका स्वागत करें, उनको सहन करने में अपने तन मन की सारी शक्ति लगा दें तो ये सब अशोभनीय बातें आसानी से समाप्त हो जाएँगी । इसीलिए उत्तराध्ययन सूत्र में इस सम्बन्ध में सुन्दर मार्गदर्शन दिया गया है "पियमप्पियं सव्व तितिक्खएज्जा ।" बुद्धिमान् साधक परिस्थिति, प्रसंग या व्यक्ति प्रिय हों या अप्रिय, सबको शान्तिपूर्वक सहन करें । कठिनाइयों से डर कर, हिम्मत हार कर मनुष्य बैठ जाए तो बात अलग है, परन्तु प्राणी में जो एक विशिष्ट शक्ति है, जिसे क्षान्ति या तितिक्षा कहा गया है, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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