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________________ बुधजन होते शान्ति-परायण ७५ उससे काम ले तो मनुष्य में इतनी अधिक सुदृढ़ता और शक्ति आ जाती है कि वह स्वयं आश्चर्य चकित हो जाएगा। क्योंकि मनुष्य ज्यों-ज्यों कष्ट सहन करने का अभ्यास करता है, त्यों-त्यों उसकी शक्ति उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है। तितिक्षा के रूप में जब उसकी शक्ति विकसित होती है तो कष्टसाध्य समझी जाने वाली परिस्थितियों से भी जूझने के लिए खड़ी हो जाती है। उत्तरी ध्रुव पर रहने वाले एस्किमो जाति के लोग चिरकाल से वहाँ घोर शीत में रहते हैं। वहाँ सदा बर्फ जमी रहती है, न अन्न होता है, न वनस्पति ही फिर भी वे जीवित हैं, परिपुष्ट भी हैं, अपनी समझ से वे निश्चिन्त व सुखी हैं। सन्तोषपूर्वक जीवनयापन करते हैं। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि अभ्यास से मनुष्य अत्यन्त शर्दी, अत्यन्त गर्मी, भूख, प्यास आदि द्वन्द्वों को मन पर न लाकर सह सकता है। महान् निर्ग्रन्थ जैनमुनि भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी, डांस, मच्छर आदि २२ परिषहों को सहन करते ही हैं। तितिक्षा से मानसिक ढाँचे के साथ-साथ शारीरिक क्षमता भी बढ़ जाती है। और प्रकृति में भी ऐसा हेरफेर हो जाता है कि कठिन समझी जाने वाली परिस्थितियाँ भी सरल प्रतीत होने लगती हैं। अतः परिस्थिति को अनुकूल बनाने के साथ-साथ अपने-आपको परिस्थिति के अनुरूप ढालने की मनस्विता एवं तितिक्षा के लिए भी तत्पर रहना चाहिए। मनुष्य जितना नाजुक बनता जाएगा, उतना ही तन-मन से. दुर्बल बनेगा और परिस्थितियाँ उस पर हावी हो जाएंगी। इसके विपरीत यदि वह तितिक्षा, क्षान्ति, दृढ़ता, कष्ट-सहिष्णुता, और सहनशक्ति साहसिकता अपनाता चले तो केवल शरीर ही नहीं मन और आत्मा की तमाम शक्तियाँ विकसित होंगी। कठिनाइयाँ तो प्रत्येक कार्य में होती हैं, परन्तु यदि मनुष्य धर्माचरण या धर्मपालन के लिए इन्हें सहन करना अथवा इनसे सामना करना अनिवार्य समझे, तो इन पर विजय प्राप्त की जा सकती है। अगर सत्कार्य में कष्ट, कठिनाइयाँ, विघ्न, परिषह आदि न होते तो कोई भी व्यक्ति साधना न करता, आलसी और अकर्मण्य बन जाता। इसलिए कष्ट, कठिनाइयाँ या परिषह मनुष्य की शक्तियों को बढ़ाते हैं, उसके तन-मन को मजबूत बनाते हैं। इनसे घबराना या डरना नहीं चाहिए । इसीलिए उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है 'खंतीए परीसहे जिणइ क्षान्ति से साधक परिषहों को जीत लेता है। सहिष्णुता का मुख्य कारण : धैर्य वास्तव में देखा जाए तो असहिष्णुता का जन्म आतुरता से होता है । हथेली पर सरसों जमी देखना चाहने वाली बाल बुद्धि में सहिष्णुता और धैर्य कहाँ से आए? प्रतिकूलताओं की चुनौती हमारी सहिष्णुता और धीरता की परीक्षा है। विश्व में जिन लोगों ने सफलताएँ अजित की हैं, वे सब धर्यवान एवं सहिष्णु रहे हैं । सहिष्णुता समुद्र की-सी गम्भीरता एवं धीरता का नाम है। असहिष्णुता क्षुद्रता और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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