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________________ ६८ आनन्द प्रवचन : भाग करा देता हूँ पर शेष चर्चा तो पूरी कर लीजिए।" आगन्तुक झेंपकर चुपचाप चल दिये। इसलिए क्षमा करना, या सहिष्णुता रखना कायरता नहीं, अपितु वीरता है । कायर आदमी तो जल्दी उत्तेजित हो उठता है, वह मारपीट के डर से मन ही मन कांपता रहता है। वीर डरता नहीं, परन्तु क्षमा करता है। इसीलिए कहा है'क्षमा वीरस्य भूषणम्' 'क्षमा वीरों का आभूषण है।' मनुष्य अपने आपको दूसरों से श्रेष्ठ दिखाना चाहता है, परन्तु केवल बातों से या किसी भौतिक वस्तु से वह लोकहृदय में श्रेष्ठ पद पर आसीन नहीं हो सकता। उसके लिए सहिष्णुता (क्षमा) ही माध्यम है । रोम के पोप ने इस सम्बन्ध में ठीक ही कहा है "A brave man thinks no one his superior, who does him an injury for he has it, them in his power to make himself superior to the other by forgiving it." बहादुर आदमी अपने से उत्कृष्ट किसी को नहीं मानता, जो उसे हानि पहुँचा सके क्योंकि वह वीरता तो उसके पास है ही, परन्तु वह किसी अधिकार के प्राप्त होने पर अपने आपको उत्कृष्ट बनाने हेतु दूसरों को क्षमा करता है, यानी सहिष्णुता रखता है।" अपराधी व्यक्ति जब दूसरे से सहिष्णुता और सहानुभूति पाता है, तो वह भी एकदम सुधर जाता है और अपने अपराधों के लिए क्षमा मांगने लगता है। एकबार कटक का उड़िया बाजार भयंकर प्लेग का शिकार हो गया। बाबूपाड़ा साफ-सुथरी बस्ती होने के कारण अभी बचा हुआ था । अतः बाबूपाड़ा के छोटी उम्र के बच्चों ने एक सेवादल तैयार करके मोहल्लों में घूम-घूम कर रोगियों की सेवाशुश्रूषा, सफाई और औषधि लाने का कार्य हाथ में लिया। बारह वर्षीय एक छात्र उनका नेता था। बाबूपाड़ा में हैदर नामक एक खूख्वार मुसलमान रहता था, जिससे सारा मोहल्ला डरता था। जिन वकीलों ने उसे सजा दिलाई थी, उन्हें वह अपना कट्टर शत्रु मानता था। उसी मोहल्ले के लड़के उड़िया बाजार में जनप्रिय हों, यह बात हैदर को कांटे की तरह चुभ गई। उसने सेवादल के लड़कों को डरा-धमका कर भगा दिया। लड़कों में दुबारा उस मोहल्ले में प्रवेश करने की हिम्मत न रही। आखिर एक दिन हैदर का घर भी महामारी की लपेट में आ गया । हैदर के बहुत प्रयत्न करने पर भी न कोई डॉक्टर उसके घर आया, न किसी ने औषधि दी । निराश होकर घर लौटा तो हैदर यह देखकर दंग रह गया कि उसी सेवादल के लड़के उसके घर की सफाई कर रहे हैं, उसके बच्चों और बीबी को दवा पिला रहे हैं। हैदर का हृदय पिघल गया । आँखों से आंसू बहाते हुए लड़कों के पैरों में पड़कर क्षमा मांगने लगा। लड़कों ने उसे उठाया और कहा-"चाचा ! आपने ऐसा कौन-सा अपराध किया है। फिर आप तो हमारे मित्र के पिता हो, इसलिए हमें तो आपसे आशीर्वाद पाने का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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