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________________ बुधजन होते क्षान्ति-परायण ६५ यह असहिष्णुता सिर्फ अपने ही दृष्टिकोण को यथार्थ मानने, अपना मत, पंथ, अपने प्रियजन या अपनी विचारधारा ही श्रेष्ठ और दूसरों के दृष्टिकोण, मत, पंथ, प्रियजन एवं विचारधारा को निकृष्ट मानने की क्षुद्रता, संकीर्णता एवं मूढ़ता को उभारती है। यह सामाजिक विद्वेष की भावना बढ़ाती है, एक ओर असहिष्णुता घृणा को जन्म देती है तो दूसरी ओर श्रेष्ठता का दम्भ पनपाती है । दूसरे का विचार, व्यवहार हीनकोटि का लगने लगता है और उसे मिटा देने की भावना उभरने लगती है । यह क्षुद्र अहं की पराकाष्ठा ही है। __आज इसी असहिष्णुता के कारण परिवार, समाज, जाति, संस्था, संगठन एवं मंडल में संघर्ष, व्यापक कलह, फूट, द्वेष, ईर्ष्या, दलबन्दी एवं घृणा पनप रही है। जिससे न केवल वैयक्तिक तथा पारिवारिक जीवन ही छिन्न-भिन्न और अशान्त बना हुआ है, बल्कि राष्ट्रीय जीवन भी खण्ड खण्ड हो रहा है। कुछ लोग किसी सार्वजनिक विषय पर वार्तालाप करते-करते निजी प्रसंगों पर आ जाते हैं, और फिर असहिष्णु होकर परस्पर कटु आक्षेप करने लगते हैं; तथा व्यक्तिगत बुराई पर उतर आते हैं। अपनी मर्जी के खिलाफ जरा-सी बात सुनकर भड़क उठते हैं । यह असहिष्णुता मानसिक दुर्बलता ही मानी जाएगी। इसके कारण समझौते की बातचीत, सद्भावनापूर्वक बहस या सत्य के द्वार तक पहुँच पाना सम्भव नहीं होता। असहिष्णु व्यक्ति के व्यवहार से लोगों में यह भावना घर कर जाती है कि यह अपने को बढ़चढ़कर देखता है, तथा स्वयं की श्रेष्ठता की डींग हांक कर उसकी ओट में हमारा निरादर करना चाहता है। असहिष्णु व्यक्ति के प्रति प्रतिपक्षी की प्रवृत्ति प्रायः प्रतिशोधगामिनी हो जाती है। वह उसके असहिष्णु व्यवहार से दुःखी होकर उस व्यक्ति के साथ भी दुःखद व्यवहार करके बदला लेने की योजना बनाने लगता है। प्रतिक्रिया में असहिष्णुताजन्य उद्वेग बढ़ता ही जाता है। तथा विद्वोष की कष्टकारक एवं हानिकारक परम्परा बढ़ने लगती है । परिणाम में सन्ताप और अशान्ति ही पल्ले पड़ती है। हिटलर यहूदियों के प्रति इतना अधिक असहिष्णु बन गया था कि उसने उनका भयंकर उत्पीड़न और नृशंस सामूहिक वध किया। मुसलमानों और ईसाइयों में मध्यकाल में मूर्तिपूजन के प्रति ऐसी असहिष्णुता बढ़ी कि उन्होंने इसके लिए रक्तपात से लेकर लूटपाट तक की क्रूर गतिविधियों को अपनाया। यह निश्चित है कि जिसके प्रति व्यक्ति असहिष्णु होता है, उससे फिर उस असहिष्णु व्यक्ति का अस्तित्व सहन नहीं होता। फलतः कलह, संघर्ष और विनाश की स्थिति उत्पन्न होती है। इसीलिए एक पाश्चात्य साहित्यकार Shelly (शेली) ने असहिष्णु होना घोर अपराध बताया है "It is not a merit to tolerate, but rather a Crime to be intolerant." Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004011
Book TitleAnand Pravachan Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1979
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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