________________
बुधजन होते शान्ति-परायण ५६ वास्तव में बुद्धिमान व्यक्ति अपनी बुद्धि से हिताहित एवं परिणाम का विचार करता है तो यह स्वाभाविक है कि वह विरोधी विचारधारा या धार्मिक क्रिया को देखकर भड़के नहीं, प्रतिकूल परिस्थितियों में घबराये नहीं, किसी व्यक्ति द्वारा विरोध, प्रहार या गालीगलौज किये जाने पर भी शान्तभाव से सहन करे, धर्मपालन करते समय अनेक प्रकार के कष्ट या दुःख आ पड़ने पर भी धैर्य से सहन करे। किसी के प्रति कोई गलती या अपराध हो गया हो तो क्षमायाचना करे। बुद्धिमान की इन सब वृत्ति-प्रवृत्तियों को देखते हुए नि:सन्देह यह कहा जा सकता है कि वह क्षान्ति-परायण होता है । शान्ति-क्षमा उसके जीवन के कण-कण में रम जाती है, उसकी श्रद्धा, वृत्ति या प्रवृत्ति स्वाभाविकरूप से क्षान्ति के प्रति होती है । क्षान्ति बुद्धिमान के जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग बन जाती है। वह कैसी भी परिस्थिति में अपने आपे से बाहर नहीं होता, न वह अपने स्वाभाविक गुणों को छोड़ती है। इसलिए गौतमकुलक में कहा गया है-'बुद्धा नरा खंतिपरा हवंति।'
क्षान्ति और धर्म का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध क्षान्ति के मुख्यतया तीन अर्थ फलित होते हैं—(१) सहिष्णुता, (२) सहनशीलता और (३) क्षमा ।' क्षम क्रिया सहन करने के अर्थ में है। इसी में ये तीनों अर्थ गभित हैं। धर्म में शान्ति के ये तीनों अर्थ समाविष्ट होते हैं। अहिंसा धर्म है और वह विरोध या हिंसा करने में नहीं है, और क्षान्ति में भी विरोधी या उपकारी की बात को सुन या पढ़कर उत्तेजित न होना, सहन करना, प्रहार आक्षेप, आदि से प्रतीकार न करना होता है। इसके अतिरिक्त धर्म में त्याग, नियम, व्रत आदि का पालन करने में अनेक कष्ट या विघ्न आने पर उन्हें समभाव से सहना पड़ता है, धैर्य से परिस्थिति का सामना करना पड़ता है, संयम रखना पड़ता है, क्षान्ति में भी यही बात है। इसलिए धर्म के बदले क्षान्ति शब्द का प्रयोग कर दें तो कोई आपत्ति नहीं। धर्म में अपने कृत अपराधों, गलतियों और भूलों के लिए दूसरों से क्षमायाचना करके आत्मशुद्धि करना आवश्यक होता है, साथ ही दूसरे अपनी गलतियों पर अपराध के लिए क्षमा मांगें तो हृदय से क्षमादान करना भी जरूरी होता है; क्षान्ति में भी ये दोनों तत्व आ जाते हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि क्षान्ति और धर्म का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। क्षान्ति के बिना धर्म टिक नहीं सकता और धर्मपालन के बिना क्षान्ति जीवन में आ नहीं सकती। इसलिए महर्षि गौतम ने धर्म के सक्रिय रूप को अभिव्यक्त करने वाले क्षान्ति (खंति) शब्द का प्रयोग जानबूझ कर किया है। वास्तव में क्षान्ति शब्द यहाँ धर्मपुरुषार्थ का ही द्योतक है।
सहिष्णुता : बुद्धिमान का विशिष्टगुण क्षान्ति का सबसे उपयुक्त अर्थ सहिष्णुता है। यह बुद्धिमान मनुष्य का एक विशिष्ट गुण है। पशु स्वभाव से ही असहनशील होते हैं। उनमें अपने सिवाय दूसरों के हित-अहित की चिन्ता या विवेकशीलता नहीं होती। मनुष्य में भी जब पशुता
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org