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आनन्द प्रबचन : भाग ८
आ जाती है, तब वह भी मूढ़ होकर दूसरों का हिताहित नहीं सोचता साधारण-सा मतभेद होने पर वह दूसरों का अहित करने, विरोध करने या उससे संघर्ष करने पर तुल जाता है । दूसरों का उत्कर्ष उसे अकारण ही असह्य हो उठता है । ऐसा व्यक्ति दूसरे धर्म-सम्प्रदाय, दूसरे मत-पंथ, दूसरी विचारधारा या दूसरी जाति के विचारों या कार्यकलापों को देख कर भड़क जाता है । वह अत्यन्त असहिष्णु हो जाता है । बुद्धिमान पुरुष के स्वभाव में सहिष्णुता होती है । वह दूसरे के विचारों तथा धार्मिक क्रियाओं के प्रति अनुदारता नहीं रखता । इस सम्बन्ध में जार्ज इलियट लिखता है -
"The Responsibility of tolerance lies with those, who have the wider vision."
"जिन लोगों का विशाल दृष्टिकोण होता है, उन पर सहिष्णुता की जवाबदारी आती है । "
वास्तव में जो बुद्धिमान होते हैं, उनसे ही दूसरे के प्रति सहिष्णुता की आशा रखी जा सकती है । जो विचार मूढ अदूरदर्शी एवं अविवेकी होता है, वह प्रायः दूसरों की अकारण ही नुक्ताचीनी करता है, परिवार में भी ऐसे लोग बड़े असहिष्णु होते हैं, जरा से विचार भेद को या अभिप्राय भेद को वे सह नहीं सकते । साम्प्रदायिक कट्टरता के कारण ऐसे लोग दूसरों के प्रति अनुदार होते हैं । इस कारण उन्हें दूसरों का सहयोग बहुत कम मिलता है । वे दूसरों की सद्भावना भी खो बैठते हैं । ऐसे लोग कभी कभी गुस्से में आकर दूसरों के साथ लड़ाई-झगड़ा, या मारपीट भी कर बैठते हैं। अपने घर पर आ जाने पर उसे अपमानित करते देर नहीं लगाते । वे परमात्मा को सर्वजीवों के प्रति समभावी, वीतराग एवं परम सहिष्णु मानते हुए भी उनके पुत्र सम मनुष्यों के प्रति असहिष्णुता का व्यवहार करते हैं ।
बाइबिल की एक कथा है । जाड़े की रात थी । इब्राहीम भूले-भटके यात्रियों की प्रतीक्षा में अपने घर के द्वारपर बैठा था । एक थका-मांदा अत्यन्त वृद्ध उसके द्वार पर आया । इब्राहीम स्वागत करके उसे घर के अन्दर ले गया । उसे बिठाकर, जो कुछ खाने को था, उसके सामने रख दिया । बूढ़े ने इस आतिथ्य के लिए उसका आभार माना । जब वह भोजन करने लगा तो इब्राहीम से न रहा गया, वह पूछ बैठा
- " बाबा ! तुम इसी प्रकार भगवान के प्रति भी कृतज्ञता प्रकट करते हो या नहीं ?" वृद्ध ने कहा- -'मैं तो अग्नि-उपासक हूँ । उसी को अपना देव मानता हूँ ।" यह सुनते ही रोष में आकर इब्राहीम ने तत्काल अपने अतिथि को बाहर धकेलते हुए कहा"मैं ऐसे ईश्वरद्रोही को अपने घर में स्थान नहीं दे सकता ।" बूढ़ा लड़खड़ाता हुआ उस अंधेरी रात में कहीं चला गया ।
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कहते हैं, थोड़ी देर बाद एक साधारण आदमी के वेष में स्वयं भगवान उसके यहाँ पहुँच गये । इब्राहीम ने बड़े गर्व के साथ अग्निपूजक वृद्ध को निकाल देने और स्वयं के प्रभुभक्त होने की डींग हांकी | भगवान ने कहा- वह वृद्ध सौ वर्ष से मुझे
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